शनिवार, 20 जून 2015

प्रेमचन्द का पहला उपन्यास-दुर्गादास

दुर्गादास, प्रेमचन्द का एक रोचक ऐतिहासिक उपन्यास है जो मूलतः उर्दू में लिखा गया था, जिसे हिन्दी में लिप्यांतर करने के बाद 1914-1915 में प्रकाशित किया गया इसमें एक देश-भक्त, वीर राजपूत दुर्गादास के संघर्ष मय जीवन की अमर कहानी है। स्वयं प्रेमचन्द के शब्दों में -"राजपूताना में बड़े-बड़े शूर-वीर हो गये हैं उस मरुभूमि ने कितने ही नर-रत्नों को जन्म दिया, पर दुर्गादास अपने अनुपम आत्मत्याग, अपनी निःस्वार्थ सेवाभक्ति और अपने उज्जवल चरित्र के लिए कोहिनूर के समान हैं औरों में शौर्य के साथ कभी-कभी हिंसा और व्देष का भाव भी पाया जायगा, कीर्ति का मोह भी होगा, अभिमान भी होगा, पर दुर्गादास शूर होकर भी साधु पुरुष थे।"


धनपतराय ने अपना प्रारंभिक लेखन 'नबाबराय' के नाम से किया, परन्तु बाद में 'प्रेमचन्द' नाम से प्रसिध्दि पाई। हिन्दी में प्रकाशन-काल के अनुसार 'दुर्गादास' उपन्यास का यह शताब्दी वर्ष है। इस उपन्यास में प्रेमचन्द की रचनाशीलता के प्रारम्भिक, किन्तु महत्त्वपूर्ण तत्व समाहित हैं। पाठकों और शोधार्थियों के लिए यह विलुप्तप्राय और अनुपलब्ध कृति, भारतीय ज्ञानपीठ ने पुनः-प्रकाशित की है।