शनिवार, 22 जुलाई 2017

जय तो इसी जिन्दगी की है

81 वर्षीय चन्द्रसेन विराट हिंदी के निष्णात कवि हैं. वे अपनी अनूठी, अतिभावमय, विलक्षण ग़ज़लों के लिए जाने जाते हैं. ‘अमन प्रकाशन’, कानपुर से प्रकाशितइस जिंदगी की जयउनका तेरहवां ग़ज़ल-संग्रह है, जिसमें 90 क्लासिक ग़ज़लें संकलित हैं.

प्रेम और सौन्दर्य के मधुर-गायक विराट ने मुस्लिम-तहजीब और सूखे-मेवों के साथ आयी ग़ज़ल विधा के हिंदी-संस्करण को स्वीकार किया. उन्होंने परिनिष्ठित हिंदी के जातीय स्वाद, शक्ति और मुहावरेदानी को पहचाना और उसमेंविशुध्द-ग़ज़लेंकहीं-पढ़ीं. उनकी गायीं-ग़ज़लें, सहोदर उर्दू-ग़ज़लों से प्रतिस्पर्धित नहीं हैं, बल्कि वे स्वयं, उर्दू की लय,लोच और रूमानियत के कायल हैं. उल्लेख्य है, 1960-70 के दशक में जब युवा-विराट नेहिंदी ग़ज़ल के पर्याय-दुष्यंतके साथ इस विधा को अंगीकार किया था, तब उन्होंने बाकायदा कैफ भोपाली, ताज भोपाली जैसे नामी उस्तादों से उर्दू-अदब और ग़ज़ल की बारीकियां सीखीं; जिन्हें वे आज-पर्यंत प्रयोग कर रहे हैं. तथापि, उनकी ग़ज़लों के सिरे तुलसी, सूर, कबीर से जुड़े हुए दिखाई देते है-

कंठ मिला तो गाता रहनूतन गीत सुनाता रह
अक्षय रस का पात्र ग़ज़लपीता और पिलाता रह.

जीवन की आपाधापी, लगभग प्रतिपल बदलते परिदृश्य, प्रतिपल बदलती प्राथमिकतायें, प्रतिपल बढ़ते दबाब. एक अस्थिरता पैदा करते हैं. या यूँ कहें, एक अतिरिक्त तीव्रता से घटना-क्रम घूमता है, जिन्हें योग्यता के स्वीकार्य अवयव भी कह सकते हैं और पुरुषार्थ के प्रेरक-प्रवाह भी. ऐसे में प्राप्त अनुभवों और अनुभूतियों को बांटता वरिष्ठ - गीतकार इस जिन्दगी का जयकारा लगाता है, भावी-पीढ़ी कोपराई गलतियों से सीखनेतथाधैर्य के साथ आगे बढ़नेकी दो-टुक सलाह देता है-

माना हमने कहना, खानी पड़ी है ठोकर
हमको कहा गया था, चलना संभल-संभल के
उठ्ठो,चलो कि चलकर, मंजिल के पास पहुँचो
मंज़िल आने वाली है पास खुद ही चल के
मत व्यर्थ ढाल इनको, रहने दे आँख में ही
मोती बनेगें आंसू इन सीपियों में पल के
बीते पे रो इतना, हो आज का अनादर
जी वर्तमान पूरा, सपने भी देख कल के.

शान्त, सुन्दर प्रकृति का कुपित होकर बिफरना और कहर बरपाना, अर्थी या बारात पर होती गुलफिशानी, शोषितों का खून पीते कुबेर, राजनीतिज्ञों के दुहरे चरित्र सभी तो हैं, उनकी इन गजलों में. बस! कहीं-कहीं इनके तेवर व्यंजनात्मक जरुर हैं

जाने भी या अजाने लग जाता दाग कोई
चादर यहाँ किसी की पूरी धवल नहीं है
ये राजनीति वेश्या वचनों का क्या भरोसा
है घोषणाएँ थोथी उनपे अमल नहीं है.
    
विडम्बना है कि, भूख, बेकारी, गरीबी, जुल्म, शोषण, युध्द, अत्याचार और आतंक से विकृत जगत में सामान्य व्यक्ति अपने मौलिक-अधिकारों से वंचित है. वहआयेंगे ही अच्छे दिनकी स्वप्निल कल्पना तो करता है, परन्तु कब आयेगे? उसे नहीं पता. हालिया-दौर में आंदोलित किसान और उनके द्वारा अंतहीन आत्महत्याएं - कई यक्ष-प्रश्नों को जन्म देती हैं. बकौल विराट

जो रोटियां उगाता है, अधपेट रह के भी
क्यों ख़ुदकुशी के नाम पर तत्पर बना रहा.
   
कविवर विराट, डबडबाई आँखों से आंसुओं की तर्जुमानी करती सच्ची शायरी की पैरवी करते हैं और आशा करते हैं कि एक शेर तो ऐसा बने जो लोगों की जबान पर चढ़े,मशहूर हो. सच भी है ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़ रोज़ होते है (डा बशीर बद्र) लेकिन जब होते हैं, तो वे सुनने वालों के अपने होते हैं. उनमें कही गयी बात उनकी अपनी-सी होती है, एक पूरी सिलसिलेवार दास्तान; बिलकुल, गागर में सागर. मिसाल-बतौर इस संग्रह का एक शेर

भूखे थे बच्चे मां ने कंकर चढ़ाये पकने
भूखे सुला दिये है, यह भात बनतेबनते
   
अभियंता-कवि विराट, हिंदी ग़ज़ल की एक जीवित कार्यशाला हैं. उनकी ग़ज़लों में प्रयुक्त शब्द, अर्थ, भाव, रस, राग, रूप, स्वर, गंध, स्वाद, रूपक, मिथक और मुहावरे सभी बेजोड़ हैं. वे अपने आपको हिंदी ग़ज़ल काइक कारकुनमानते हैं जबकि उन्होंने सही मायने में ग़ज़ल को हिंदी का लहजा दिया है. आज भी वे गोष्ठियों-मुशायरों में जाते हैं, हिंदी का प्रतिनिधित्व करते हैं, अनुज-गजलकारों का हौसला बढ़ाते हैं. ‘कोई ग़ज़ल कहूँके स्थान परकोई ग़ज़ल कहोमें ज्यादा-विश्वास रखते हैं. उनकी निजी-मान्यता है कि-

बिरसे में मिलती खुद ही बनानी पडती
बनती है आदमी की औकात बनते-बनते.
    
जीवन के उत्तरकाल में वे तन और मन से युवा हैं. अभी भी, उनकेदृगों में रूप-रस की प्यासहै, ‘कविता-कामिनीकी कामना है. यह अलग बात है कि वे इसकी सीधी स्वीकरोक्ति कर औरों-का आसरा लेते हैं-

सच कहा हैफ़िराकसाहब ने / हाय! क्या चीज ये जवानी है.
     
इस संग्रह के जरिए विराट जी ने एक सम-सामयिक अपील की है कि अब ग़ज़ल के आगेहिंदीविशेषण लगाने की आवश्यकता नहीं रह गई है. ग़ज़ल की अस्मिता अब उसकी प्रयुक्त भाषा से बनने लगी है”. उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए हम तो यह कहते हैं कि ग़ज़ल, हिंदी के वटवृक्ष की एक हरी-भरी शाखा है. साथ ही, यह कामना करते हैं कि कवि-श्रेष्ठ चंद्रसेन विराट स्वस्थ रहें, शतायु हों तथा उनकी ग़ज़लें, उनकी प्रतिबध्दतायें, उनके मूल्य, उनके सरोकार, उनके विचार एक आन्दोलन बनकर रसज्ञ-जनों को उव्देलित करते रहें. और हाँ! रही बात, विराट उनकी ग़ज़लों के ज्यादा प्रसिध्दयाअनजानकीवह एकदम गौण है. क्योंकि, हमारा विश्वास है कि

हिंदी ग़ज़ल की बात चली तो तुम्हेंविराट
उध्दत करेंगे लोग मिसालों के नाम पर


{समीक्षित कृतिइस जिन्दगी की जय (ग़ज़ल संग्रह)/ गज़लकार - श्री चंद्रसेन विराट/ प्रकाशक अमन प्रकाशन, कानपुर मूल्य-395/- मात्र