बुधवार, 22 जुलाई 2015

सुरंग के दूसरे सिरे पर उजाला

पश्चिमवाहिनी नर्मदा पर निर्मित रानी अवन्ती बाई लोधी सागर बांध (बरगी) की दांयी तट नहर, जो 194 किलोमीटर लम्बी है, जबलपुर, कटनी, सतना और रीवा के 2.45 लाख हेक्टयर शुष्क क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करने के लिए प्रस्तावित है नहर का एलायमेंट किमी 104 से 116 के मध्य नर्मदा कछार से गंगा कछार में जाने हेतु 30 से 37 मीटर पहाड़ी को काटता है परियोजना के विस्तृत प्रतिवेदन में नहर का यह हिस्सा ओपन कट प्रस्तावित रहा यद्यपि, यह क्षेत्र सघन बसाहट वाला है और इससे राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 7 तथा हावड़ा-मुम्बई रेलवे लाइन जैसी महत्वपूर्ण संरचनाएं उपस्थित हैं अतः नहर को 8.55 मीटर व्यास की 12 किलोमीटर लम्बी टनल बनाकर निकालने का विचार किया गया 
कंसल्टिंग इंजिनियर डॉ के.सी.थामस (चेयरमेन, डी.एस.आर.पी. जल संसाधन विभाग, मध्य प्रदेश) ने टनल का व्यास 10 मीटर रखने का प्रस्ताव दिया तथा 12 किलोमीटर के मध्य एक अंतरिम आडिट की आवश्यकता भी प्रतिपादित की कार्य क्षेत्र में हाई वाटर टेबिल की संभावना को देखते हुए उन्होंने नहर एलायमेंट के दोनों तरफ गहरे टयूब वेल खोदे जाने का सुझाव दिया राज्य शासन द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति और केन्द्रीय जल आयोग, नई दिल्ली के अभियंताओं ने टनल निर्माण के प्रस्ताव का समर्थन किया हाँ! इस सन्दर्भ में केन्द्रीय जल आयोग के मुख्य अभियंता श्री डी.पी. सिंह की टिप्पणी गौरतलब है—“कमजोर और परिवर्ती स्वभाव के भूगर्भीय संस्तर में सुरंग बनाना एक हर्क्युलियन टास्क है, वह भी तब, जब टनल के ऊपर अपेक्षित कवर न हो 

टनल निर्माण में प्रचलित शब्दावलियाँ
कवर या ओवरबर्डन- टनल की छत पर आच्छादित प्राकृतिक मिट्टी या चट्टान की मात्रा को ओवरबर्डन कहते हैं सामान्यतः टनल में उसके डायमीटर के बराबर या उससे अधिक ओवरबर्डन या कवर होना चाहिए 

क्ले-किकिंग- यूनाइटेड किंगडम में क्ले स्ट्रेटा में टनल निर्माण की एक विशिष्ट पध्दति विकसित की गई, जिसे क्ले-किकिंग कहते हैं इसमें क्ले-किकर कप जैसी शक्ल का गोलाकार टूल (औजार) अपने पैरों में पहिनता है और कार्यसतह के सामने 45 डिग्री के कोण पर लेटकर मैनुअली खुदाई करता था विक्टोरियन सिविल इंजिनियरिंग में यह प्रणाली अधिक प्रचलित हुई और प्रथम विश्व युध्द के दौरान छोटी टनल खोदने में इसका उपयोग किया गया 

कट  एन्ड कवर- टनल निर्माण में कमजोर भू-गर्भीय स्ट्रेटा या कम ओवरबर्डन कवर होने पर कट एन्ड कवर का विकल्प रहता है इस अधोसंरचना में खुदाई कर ट्रेन्च/पक्का निर्माण किया जाता है और उसपर छत ढालकर, मिट्टी से ढंककर धरातल का बहुविध उपयोग किया जाता है नई दिल्ली में मेट्रो रेल के स्टेशन, सबवे एवम् एरिगेशन चेनलों में प्रयुक्त 

ग्राउटिंगटनल खुदाई में आंतरिक सतह की असंतुलित चट्टानों या मिट्टी को रसायन मिश्रित सीमेंट ग्राउट से इंजेक्ट कर मजबूती प्रदान करना ग्राउटिंग कहलाता है 

शाफ़्टजमीन के नीचे टनल तल पर जाने का उर्ध्वाकार रास्ता लम्बी टनल में एक सेन्ट्रल शाफ़्ट या एक से अधिक अंतरिम शाफ्ट होते हैं, इन्हें इन्टरमीडिएट आडिट भी कहते हैं इनका उपयोग निर्माण के समय आवागमन, वेंटिलेशन तथा खुदाई से निकले मक या अन्य मटेरियल बाहर निकालने में किया जाता है 

शाटक्रीटटनल की आंतरित चट्टानों को तुरन्त सेट होने वाली सीमेंट से स्प्रे किया जाता है, इससे टनल की प्रायमरी लाइनिंग भी हो जाती है 

टनल15वीं शताब्दी के मध्य यह शब्द फ्रेन्च के tonne-tun या लेटिन के tonne-barrel से प्रयोग में आया हिन्दी में इसका पर्यायवाची सुरंग है प्राचीन भारत में सुरंग निर्माण कला अत्यन्त विकसित रही सिन्धु-घाटी के अवशेषों में अंडरग्राउंड नालियों और रास्ते मिले हैं। महाभारत काल (लाक्षागृह से सुरक्षित निकलने के लिए पाण्डवों ने सुरंग बनायीं) से लेकर मध्यकाल तक के दुर्ग/किलों में सुरंग, आपात निकासी के लिए अनिवार्य विकल्प रहा। आज रोड/रेल यातायात, नहर (पीने का पानी, सिंचाई, विद्युत उत्पादन हेतु), सीवर लाइन, स्टीम, गैस, इलेक्टिक पॉवर एवम् टेलीकम्युनिकेशन के लिए टनल (सुरंगें) बनाई जा रहीं हैं। अंडरपास, सबवे, टियूब, मेट्रो आदि टनल की बहूप्रचलित संज्ञायें हैं 

टनल बोरिंग मशीन (टी बी ऍम)- टनल खुदाई के लिये मशीन, जिसमें सामने धरातल कटाई हेतु दांते (कटर) होते हैं आगे-आगे टनल बनती है और पीछे से (बेक-अप) से खुदाई से निकला मटेरियल बाहर भेजा जाता है 

वेंटिलेशननिर्माण के समय टनल में ताजी हवा सरकुलेट करना एवम् अन्दर की जहरीली गैसों को बाहर निकालना 

वाटर टेबिल—जमीन का निचला स्तर, जिसके नीचे की मिट्टी ग्राउंड वाटर के कारण संतृप्त रहती है ग्राउंड वाटर में वर्षा का पानी जमीन के नीचे सीपेज होता है या विभिन्न चट्टानी परतों में एकत्रित रहता है 

स्लीमनाबाद प्रोजेक्ट- रूपरेखा और वर्तमान स्थिति
1-अनुबन्ध की राशि-  रु 799.00 करोड़
2-नहर की कुल लम्बाई- 25.00 कि.मी. (104 से 129 तक)
क-  ओपन तथा कट एन्ड कवर- 13.00 कि.मी. (116 से 129 तक)
·         पूर्ण बहाव क्षमता- 152.00 क्युमेक्स        
·         नहर तल की चौड़ाई- 12.2 मीटर
·         नहर के स्लोप— आतंरिक- 1.5 :1
                   बाह्य-2:1
·         नहर का वेग- 1.36 मीटर/सेकण्ड
·         नहर में पानी की गहराई- 5.5 मीटर
ख - टनल -12.00 कि.मी. (104 से 116 तक)
·         डायमीटर- 10.00 मीटर
·         कवर—9.5 मी. से 32.97 मी.
·         इन्वर्ट लेवल (प्रवेश)- 387.95
                    (निकास)- 384.381
·         स्लोप- 1 in 3352
·         टनल लाइनिंग- प्रीकास्ट आर.सी.सी. (कांक्रीट ग्रेड-M50 A20)
·         टनल का रूपांकन केन्द्रीय जल आयोग, नई दिल्ली से स्वीकृत कराया गया

3-नर्मदा घाटी विकास विभाग, मध्य प्रदेश के अंतर्गत संचालित परियोजना (कार्यपालन यंत्री नर्मदा विकास सम्भाग क्रमांक 5, कटनी ने अनुबन्ध कर कार्यादेश जारी किया) 

4-कान्ट्रेक्टर-मेसर्स पटेल इंजीनियरिंग/ एस.ई.डब्लु./कोस्टल प्रोजेक्ट लिमिटेड (जोइन्ट वेन्चर)

5- निर्माण कार्यक्रम-
·         समयावधि- 40 महिना (मार्च 2008 से प्रारम्भ)
·         पुनरीक्षित समय- दिसम्बर 2016 तक
6-टनल बोरिंग मशीन (टी.बी.ऍम.)निर्माण एजेन्सी ने रोबिनस से 10.00 मी. व्यास की ई.पी.बी.(टी.बी.एम.), वेक आप  सिस्टम, कटिंग टूल्स, स्पेयर्स और कन्वेयर सिस्टम सप्लाई करने का अनुबंध जुलाई २००८ में किया  
·         रोबिनस– यू.एस.की एक भरोसेमंद अंतराष्टीय कम्पनी, जो 1.00 मीटर डायमीटर से लेकर 19.2 मीटर डायमीटर तक की टनल खुदाई के लिए उपकरण एवम तकनीकी सहयोग प्रदान करती है आन्ध्र प्रदेश में ए.एम.आई. प्रोजेक्ट (43.00 की.मी.) तथा चेन्नई मेट्रो उनके वर्तमान प्रतिष्ठा पूर्ण प्रोजेक्ट हैं    
·     टी.बी.एम. 14 मार्च 2011 को लांच की गई  
·     समुद्री रास्ते से कार्य स्थल तक लाने के पूर्व टी.बी.एम. के इलेक्ट्रिकल एवम हायडालिक सबसिस्टम को जांचा गया 
·         रॉबिन्स ने टी.बी.एम.को प्रथम बार आन साईट (स्लीमनाबाद) असेम्बल किया 2 अप्रेल 2011 को खुदाई प्रारम्भ की गयी 

7 टी.बी.एम.का विवरण-
·         प्रकार— मिक्स्ड फेस ई.पी.बी.
·         इंस्टाल्ड पॉवर- 4779 kW
·         टी.बी. एम. की लम्बाई (वेक अप सहित)- 100मीटर
·         टी. बी. एम .का वजन - 1150 टन
·         वेक अप का वजन- 800 टन
·         कटर हेड डायमीटर- 10.00 मीटर
·         कटर हेड मोटर- 3960 kW (12x330 kW)
·         डिस्क कटर की संख्या- 53
·         डिस्क कटर का डाय मीटर - 19” (483 मिमी) - फेस और गेज मध्य-17”(452 मिमी)
·         थ्रस्ट सिलिन्डर की संख्या- 24
·         थ्रस्ट सिलिन्डर स्ट्रोक- 2250 मिमी
·         थ्रस्ट फ़ोर्स- 62388 kW @ 345 bars
·         वेल्ट कन्वेयर क्षमता- 800TPM
·         वेल्ट कन्वेयर शक्ति- 1200kN
8-निर्माण की वर्तमान स्थिति— लगभग 2.00 किलोमीटर टनल निर्माण ठेकेदार ने अनुबंधित ओपन नहर का कार्य पूर्ण कर लिया है 

सुरंग निर्माण के समय आयी समस्याये
अ-मिश्रित धरातलीय संरचना— जमीन की अधोसंरचना एक ब्लाइंड गेम है यूँ तो मूलभूत संकल्पना एवम् निर्माण के पूर्व बोरिंग कराकर प्रत्येक मीटर गहराई पर पृथक स्ट्रेटा एवम् स्थिति प्राप्त की थी तदानुसार एजेन्सी द्वारा टी.बी.एम., उसका कटर हेड एवम् कटर रूपांकित कराया था टनल फेस पर आधे हिस्से में हल्की मिट्टी और आधे हिस्से में भारी चट्टानें रहीं सुरंग में पानी के साथ रेतीली से सिल्टी मिट्टी,पेबिल्स एवम् बोल्डरस, माडरेट से हाई वेदर्ड रॉक और कुछ-कुछ कठोर आंतरिक संस्तर के चिपचिपे एवम् रुढ़िवादी व्यवहार तथा उच्च अब्टोसिविटी के कारण कटर की कटिंग क्षमता प्रभावित हुई टी.बी.एम. का कटर ही नहीं, कटर हेड भी क्षतिग्रस्त हुआ कटर/कटर हेड के सुधार के दौरान अगस्त 2011 से दिसम्बर 2011 (120 दिन) एवम् मार्च 2012 से जून 2012 (80 दिन) उल्लेखनीय ब्रेक- डाउन रहा 
आ-स्लेंडर ओव्हरबर्डन— सुरंग के ऊपर कवर कम होने से खुदाई में परेशानी आयी। सुरंग के ऊपर 9.5 मीटर से 32.00 मीटर ओवर बर्डन रहा। प्रथम 1.5 कि.मी. (114.5 से 116) में यह 10.00 मीटर के आस–पास रहा। वैसे ठेकेदार ने प्री-विड बैठक में इस जोखिमपूर्ण हिस्से में कट एन्ड कवर का विकल्प सुझाया था, जिसे तकनीकी कारणों से अमान्य किया गया था। सुरंग के व्यास से कम कवर मशीन के कार्य में बाधा डालता है। लगातार पानी के रिसाव से भी कम कवर वाले हिस्से में परेशानी हुई। हल्की मिट्टी होने से जगह-जगह धरातल धसकने की शिकायतें आयीं। जून 2011 में भारी वर्षा से पहला सिंकहोल बना, बाद में 5 अन्य सिंक होल चिन्हित किये गये और उनसे क्षतिग्रस्त कटर बदलना पड़े। कन्वेयर वेल्ट और कटर कीचड़ में धँस गये, टी.बी.एम. बंद हो गयी, थ्रस्ट फ़ोर्स अधिकतम सीमा 35000 kN पर पहुँचा और कटर बर्बाद हो गया
इ -हाई वाटर टेबल कटनी नदी लगभग 100 मीटर दूरी पर बह रही है, जोकि सुरंग के समान्तर है और नदी का तल सुरंग के क्राउन से ऊपर है। हाई वाटर टेबल होने से लगातार सीपेज होता है, जोकि धरातल को असंतुलित करता है। इससे सुरंग में कटर हेड को कार्य करने में परेशानी होती है कटर बदलने एवम् रखरखाव में भी दिक्कत होती है। वाटर टेबिल कम करने के लिए टियूब वेल बोरिंग की जा सकती है, परन्तु सिंक होल की बढ़ती तादाद को देखते हुए राज्य शासन ने स्लीमनाबाद तहसील के टनल क्षेत्र में टियूब वेल खनन प्रतिबन्धित कर दिया है। ऐसी परिस्थितीयों में ग्राउंड फ्रीजिंग की जा सकती है या पम्प से रिसन का पानी खींचा जा सकता है। 
ई-कार्बन मोनाआक्साइड की समस्या- ठेकेदार ने कटर हेड बदलते समय कार्बन मोनाआक्साइड की उपस्थिति दर्ज की और इस कारण सुधार कार्य रोकना पड़ा। खुदाई मटेरियल की जाँच की गई, जिसमें 28% हाइड्रोकार्बन पाया गया। कार्बन मोना आक्साइड के निदान हेतु 40 होल 8 मीटर और 40 होल 18 मीटर गहरे किये गये और उनको ग्राउट कर इंटरवेन्शन का प्रयास किया, जो असफल रहा। 
     
सेन्ट्रल इंस्ट्रीटयूट ऑफ़ माईनस एन्ड फ्यूल, धनवाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने 7 जनवरी 2013 को निरीक्षण किया। उन्होंने कटर हेड के सामने खुदाई करके गैस निकलने के कारणों का अध्ययन किया। विस्तृत जाँच प्रतिवेदन में तीन कारणों की चर्चा मिलती है—
1 –CO, मिट्टी या चट्टान धरातल के नीचे हो और खुदाई में बाहर निकल आयी हो। 
2 –कम्प्रेस्ड एयर के साथ CO पहुँच गयी हो। 
3-खुदाई में ड्रिलिंग विट, मिट्टी, कम्प्रेस्ड एयर और सरफेसटेन्ट के मिश्रित प्रभाव से उत्पन्न हुई हो।

टनल के ऊपर क्राउन कवर 10 मीटर एवम् परमियेबिल स्ट्रेटा होने से CO की सम्भावना कम होती है। कम्प्रेस्ड एयर का रासायनिक विश्लेषण करने पर उसमें CO नहीं पाई गयी। तब सिर्फ कटिंग ऑपरेशन के समय मिश्रित प्रभाव की सम्भावना बनती है। वैक स्वाइल में 28% कार्बनिक मटेरियल की उपस्थिति CO का उत्पादन कर सकती है। वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कटाई उपकरण सुधारते समय निम्न सावधानियाँ रखने का सुझाव दिया-
-चेम्बर को लगातार फ्लश किया जावे, जब तक CO स्तर नियंत्रण में न आये।
-डायनामिक फ्लो कंडीशन स्थापित की जावे, CO निर्माण पर निगरानी रखी जावे।
-रखरखाव दल अपने साथ ऑक्सीजन मास्क एवम् अन्य आपातकालीन उपकरण रखे।
-चेम्बर में काम करने वाला दल बाहर लगातार सम्पर्क में रहे। बेहतर होगा कि बाहर मानिटर लगाकर सम्पादित सुधार कार्य पर नियंत्रण रखा जावे।
-सुधार कार्य के तुरन्त बाद टीम बाहर आ जावे
। 

ए-नौ दिन चले अढाई कोस— स्लीमनाबाद टनल की प्रगति अत्यन्त मन्द है। टी.बी.एम. की रूपांकित क्षमता के अनुसार यह एक दिन में टनल निर्माण कर सकती है। आज दिनांक तक (लगभग 5 वर्ष पूर्ण होने के बाद) 2.00 कि.मी. टनल बनी है। जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि नौ दिन चलने के बाद मात्र अढाई कोस दूरी तय कर पाये हैं। इस पर चिन्ता और चिन्तन दोनों आवश्यक है। विन्ध्य क्षेत्र की दरकती धरती और वहाँ के जुझारू किसान टनल के निकास पर टकटकी लगाये हैं कि-
-टनल का निर्माण कब पूरा होगा?
-नर्मदा का सोन से मिलन* कैसे होगा?
(*नर्मदा पुराण में वर्णन है कि चिरकुँवारी नर्मदा अपने प्रेमी सोनभद्र के व्यवहार से रुष्ठ होकर पश्चिम की ओर चली गयीं। बरगी व्यपवर्तन, नर्मदा-सोन के पुनर्मिलन का प्रयास है)
-विन्ध्य प्रदेश के खेत कब लहलहाएंगे?

        
तकनीकी/गैरतकनीकी कारणों से टनल निर्माण अत्याधिक बिलम्ब हुआ। टर्न-की कान्ट्रेक्ट की अर्हता को पूर्ण करती इस मल्टीनेशनल कम्पनी (ज्वाइंट वेन्चर) ने निर्माण के दौरान आने वाली समस्याओं का पूर्व आकलन भी किया था। कमजोर एवम् मीटर- दर- मीटर बदलते धरातलीय संस्तर, आन्तरिक रिसाव, क्राउन पर कम कुशन की उपलब्धता जैसी तकनीकी खामियों से वह भलीभांति परिचित रही। विभाग ने भी उसे समय-समय पर सचेत किया। बाबजूद इसके, भूगर्भीय परिस्थितियाँ अपनी जगह पर हैं, रोबिनस की अपनी सीमा है। हाँ! समय अनुबन्ध का सत्व / सार है (Time is the essence of contract), जिसे अनावश्यक रूप से बढाया जाना हर कारक को प्रभावित करेगा। यदि हो सके तो अनुबन्ध की शर्तों को कुछ लचीला किया जावे। एक डेड लाइन निर्धारित कर निर्माण-प्रक्रिया, निर्माण-मशीनरी एवम् निर्माण-समय की समीक्षा की जाना चाहिए। विकल्प-बतौर सुरंग के प्रवेश- व्दार (जबलपुर तरफ) से भी एक टी.बी.एम. लगायी जा रही है, मशीन मँहगी है, पूंजी अधिक फसेगी, परन्तु समय के सापेक्ष मूल्य वृध्दि पर गौर करें तो शायद, यह विकल्प सस्ता है। 
हाँ! प्रवेश-व्दार से प्रविष्ट अतिरिक्त मशीन को बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं। ऐसे में डॉ.के.सी. थामस का सुझाया अंतरिम आडिट का प्रस्ताव उत्तम है। वैसे रोबिनस के प्रेसिडेन्ट लोक होम पिछले दिनों वेव-सेमिनार में दुनिया भर के टनल विशेषज्ञों से रू-ब-रू हुए। अपने उद्बोधन में उन्होंने उस मिथक को झुठलाने का प्रयास किया, जिसके अनुसार क्लिष्ट धरातलीय स्थितियों में परम्परागत ड्रिल और ब्लास्ट पध्दति ही टनल- निर्माण का श्रेष्ठ विकल्प है। उनका मत था कि टनल बोरिंग मशीन विषम परिस्थितियों (मिक्स फेस और हाई वाटर टेबल कंडीशन) में बेहतर कार्य करती है वह भी दुगनी गति से। उनके कथन में कितनी सच्चाई है? यह तो भविष्य बतलायेगा! वैसे, दूसरे छोर पर ‘कट एन्ड कवर’ या ‘ड्रिल और ब्लास्ट’ की संभावना तलाशने में भी कोई हर्ज़ नहीं है। योजनाकार,निर्माण-एजेन्सी और निर्माण से जुड़े अभियन्ता इस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर परियोजना हित में सही निर्णय लेंगे। 
             
क्ले- किकिंग’ से परिष्कृत होती टनल- टेक्नालाजी, आज अत्याधुनिक बोरिंग मशीन तक पहुँच चुकी है। सुरंग-निर्माण- प्रक्रिया मानव के जीवन-दर्शन की तरह है। इसे जन्म और पुनर्जन्म से जोड़ा जाता है। शैशव से किशोर और किशोर से परिपक्वता प्राप्त करती अँधेरी सुरंग के दूसरे सिरे पर उजाला ही उजाला रहता हैआवश्यकता है कि- हम सभी सन्देहों के मकडजाल से बाहर निकलें! धैर्य धारण करें!! तकनीकी का सुनियोजित प्रयोग करें, वह भी सकारात्मकता एवम् समर्पण के साथ!!! और अन्त में, टनल इंजिनियर बड़ोग का श्रृध्दा-स्मरण करते हुए यह आलेख समाप्त करूँगा—जिन्होंने देवभूमि हिमाचल में कालका-शिमला रेल खण्ड पर 1900-1903 के मध्य टनल निर्माण करायी थी। टनल के छोर न मिल पाने की मिलीमीटरीय त्रुटि के अपराध-बोध से ग्रस्त होकर उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। 

रविवार, 19 जुलाई 2015

अखिल भारतीय क्षत्रिय धर्म संरक्षण, शोध एवम् समन्वय संस्थान के अलमबरदार- जयसिंह


इन्दौर ठिकाणे के कुँवर जयसिंह पंवार, 29 जून 2015 को पिछौर-शिवपुरी (म.प्र.) के एक  होटल में मृत मिलेमृदुभाषी और मिलनसार जयसिंह का इन्दौर में स्वयं का ट्रेक्टर- बियरिंग- सप्लाई का प्रतिष्ठित व्यवसाय है जिसे, ‘पंवार- मार्केटिंग’ नामक निजी कार्यालय से संचालित करते थे। वे पिछले दिवस कारोबार के सिलसिले में  ही पिछौर गये थे सूत्र बतलाते हैं, कि वे हाई ब्लड प्रेशर के साथ-साथ डायविटिज के भी मरीज रहे
2008 के इन्दौर में-अखिल भारतीय क्षत्रिय धर्म संरक्षण, शोध एवम् समन्वय संस्थान के राष्ट्रीय अधिवेशन में जयसिंह जी (तत्कालीन प्रदेश महामंत्री) की सक्रिय भूमिका को सदैव याद रखा जावेगा। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ठा.रघुबीरसिंह पंवार के निधन के बाद कुँवर जयसिंह ने संस्थान के प्रादेशिक- दायित्वों को भली-भांति सम्भाला और मृत्युपर्यंत संस्थान के अलमबरदार (ध्वजवाहक) बने रहे

क्षात्र-समरसता के प्रतीक कुँवर जयसिंह के आकस्मिक निधन से स्वजन-परिजन, समाज और संस्थान सभी हतप्रभ हैं, दुखी हैं- कुँवर जयसिंह का देहावसान, संस्थान के लिए एक अपूर्णनीय क्षति है। संस्थान के वरिष्ठ पदाधिकारियों—सर्वश्री ठा.वंशगोपाल सिंह सिसोदिया (कानपुर-उ.प्र.) राष्ट्रीय अध्यक्ष, ठा.जितेन्द्र कुमार सिंह (हाजीपुर-बिहार), श्रीमति लीला पंवार (इन्दौर-म.प्र.), ठा.सुरेश सिंह गौतम (भोपाल), ठा.सूरज सिंह भाटी(जबलपुर), कुँवर नरेंद्र सिंह पंवार (रतलाम), ठा.गणेश सिंह कुशवाहा (देवास), नर सिंह परदेशी (जलगाँव-महाराष्ट्र), ठा.शम्भू सिंह पंवार (होशंगाबाद) के मोबाईल संवेदना-संदेशों को संकलित करते हुए परम- पिता से प्रार्थना है कि अनुज जयसिंह की दिवंगत आत्मा को चिरशांति और शोकाकुल परिवार को यह गहन दुःख वहन करने की सामर्थ्य प्रदान करे
सुरेन्द्र सिंह पंवार
राष्ट्रीय महासचिव,
अखिल भारतीय क्षत्रिय धर्म संरक्षण,शोध एवम् समन्वय संस्थान
201,शास्त्री नगर गढ़ा जबलपुर (म.प्र.)

शनिवार, 20 जून 2015

प्रेमचन्द का पहला उपन्यास-दुर्गादास

दुर्गादास, प्रेमचन्द का एक रोचक ऐतिहासिक उपन्यास है जो मूलतः उर्दू में लिखा गया था, जिसे हिन्दी में लिप्यांतर करने के बाद 1914-1915 में प्रकाशित किया गया इसमें एक देश-भक्त, वीर राजपूत दुर्गादास के संघर्ष मय जीवन की अमर कहानी है। स्वयं प्रेमचन्द के शब्दों में -"राजपूताना में बड़े-बड़े शूर-वीर हो गये हैं उस मरुभूमि ने कितने ही नर-रत्नों को जन्म दिया, पर दुर्गादास अपने अनुपम आत्मत्याग, अपनी निःस्वार्थ सेवाभक्ति और अपने उज्जवल चरित्र के लिए कोहिनूर के समान हैं औरों में शौर्य के साथ कभी-कभी हिंसा और व्देष का भाव भी पाया जायगा, कीर्ति का मोह भी होगा, अभिमान भी होगा, पर दुर्गादास शूर होकर भी साधु पुरुष थे।"


धनपतराय ने अपना प्रारंभिक लेखन 'नबाबराय' के नाम से किया, परन्तु बाद में 'प्रेमचन्द' नाम से प्रसिध्दि पाई। हिन्दी में प्रकाशन-काल के अनुसार 'दुर्गादास' उपन्यास का यह शताब्दी वर्ष है। इस उपन्यास में प्रेमचन्द की रचनाशीलता के प्रारम्भिक, किन्तु महत्त्वपूर्ण तत्व समाहित हैं। पाठकों और शोधार्थियों के लिए यह विलुप्तप्राय और अनुपलब्ध कृति, भारतीय ज्ञानपीठ ने पुनः-प्रकाशित की है।

रविवार, 31 मई 2015

मूक माटी

धर्म-दर्शन एवम् अध्यात्म के सार को आज की भाषा एवम् मुक्त छन्द की मनोरम काव्य-शैली में निबध्द कर कविता-रचना को नया आयाम देने वाली एक अनुपम कृति
आचार्य श्री विद्यासागर जी की काव्य-प्रतिभा का यह चमत्कार है कि उन्होंने माटी जैसी निरीह, पद-दलित एवम् व्यथित वस्तु को महाकाव्य का विषय बनाकर उसकी मूक वेदना और मुक्ति की आकांक्षा को वाणी दी है। कुम्भकार शिल्पी ने मिट्टी की ध्रुव और भव्य सत्ता को पहचानकर, कूट-छानकर, वर्णशंकर कंकर को हटाकर उसे निर्मल मृदुता का वर्ण लाभ दिया। फिर चाक पर चढ़ाकर, आवां में तपाकर, उसे ऐसी मंजिल तक पहुंचाया है। जहाँ वह पूजा का मंगल-घट बनकर जीवन की सार्थकता प्राप्त करती है। कर्मबध्द आत्मा की विशुध्दी की ओर बढ़ती मंजिलों की मुक्ति-यात्रा का रूपक है -यह महाकाव्य
अलंकारों की छटा, कथा-कहानी सी रोचकता, निर्जीव माने-जाने वाले पात्रों के सजीव एवम् चुटीले वार्तालापों की नाटकीयता तथा शब्दों की परतों को बेधकर अध्यात्म के अर्थ की प्रतिष्ठापना यह सब कुछ सहज ही समा गया है इस कृति में, जहाँ हमें स्वयं और मानव के भविष्य को समझने की नयी दृष्टि मिलती है और पढ़े-सुने को गुनने की नयी सूझ

इस अनुपम कृति का एक और नया संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ ने प्रकाशित किया है

[महाकाव्य के फ्लेप पर छपी कुछ पंक्तियाँ]

मंगलवार, 12 मई 2015

झुके न तुम प्रताप प्यारे

शीतल भाट ने दिल्ली दरबार में मुग़ल बादशाह अकबर को मुजरा करते समय सिर पर बंधी पगड़ी हाथ में ले ली। पूछे जाने पर उसने उत्तर दिया- “यह पगड़ी मुझे उन महाराणा प्रताप ने दी थी, जिनका सिर भगवान एकलिंग के सिवाय किसी और को कभी नहीं झुका। अतः मैंने भी इस पगड़ी का मान रखा।” शहंशाह अकबर, शीतल की निर्भीकता से प्रसन्न हुआ, परन्तु उसके दिल में एक टीस अवश्य उठी—
सूर्य झुका, झुक गये कलाधर,
झुके गगन के तारे।
अखिल विश्व के शीश झुके,
पर झुके न तुम प्रताप प्यारे।

[राजस्थान के महाराणा और राजाओं का जीवन-चरित्र-मुंशी देवीप्रसाद एवम् हरिकृष्ण प्रेमी की कविता “तुम्ही?” पर आधारित।]

धरम रहसी, रहसी धरा

एक युध्द में कुंवर अमरसिंह मुग़ल सेनापति मिर्जाखां को पराजित कर उसकी स्त्रियों को पकड़कर अपने पड़ाव ले आये तो महाराणा ने कुँवर को फटकार लगाई और मुग़ल स्त्रियों को ससम्मान वापिस भिजवा दिया। इस घटना से अब्दुल रहीम खानखाना, जो बादशाह अकबर के नजदीकी रिश्तेदार थे, अत्याधिक प्रभावित हुए। उन्होंने महाराणा को लिख भेजा-
धरम रहसी, रहसी धरा,
खप जासी खुरसान
अमर बिसम्बर उपरे,
राख न हच्चो राण

(अर्थात-तुम्हारा धर्म यथावत रहेगा और पृथ्वी भी रहेगी, परन्तु यवनों का नाश हो जायेगा। हे राणा! उस अविनाशी विश्वंभर पर विश्वास रखो)
[‘अकबरनामा’ अबुल्फज़ल और जयशंकर प्रसाद की कविता ‘महाराणा का महत्त्व’ पर आधारित।]


पटको मुन्छां पाण

बादशाह अकबर ने अपने दरबारी पृथ्वीराज राठौड़ से कहा- “पता चला है, कि कीका (महाराणा प्रताप) मुझे पातशाह मानने लगा है।” पृथ्वीराज राठौड़ एक अच्छे कवि थे और महाराणा प्रताप के सच्चे प्रशंसक। उन्हें बादशाह की बात का रत्ती भर विश्वास नहीं हुआ और सच्चाई जानने के लिए महाराणा को एक पत्र भेजा, जिसमें लिखा था कि यदि महाराणा प्रताप अपने मुँह से अकबर को बादशाह कहने लगे तो कहना चाहिए कि सूर्य पश्चिम से ऊगने लगा। हे एकलिंग के दीवान! मुझे बतायें कि- “पटकूं मुन्छां पाण, कै पटकूं निज तन करद।”
प्रत्त्युत्तर में महाराणा ने लिखा-
खुसी हूँत पीथल कमध, पटको मुन्छां पाण,
पछतण है जैतो पतौ, कलमां सिर कैवाण
(अर्थात-वीर पृथ्वीराज! तुम प्रसन्न होकर मूंछों पर ताव दो, जब तक प्रताप के हाथ में तलवार है, कलमा पढने वालों के सिर पर तनी रहेगी।)

और, इतिहास गवाह है कि महाराणा ने मृत्युपर्यंत दिल्ली-दरबार की आधीनता नहीं स्वीकारी।
[‘पातल और पीतल’ एवम् ‘महाराणा प्रताप’-सम्पादक डा. बृजेश सिंह पर आधारित।]

महाराणा है अनन्य मातृभूमि के पुजारी
चतुरस्त्र फ़ैल उठा उनका प्रताप है।
बप्पा श्री खुमाण औ हमीर वीर कुम्भा-सा
सांगा की परम्परा का लिया कर चाप है।
विकट प्रचण्ड वरिवंड है अखण्ड बना
भारतीय भूमि काहरा समग्र ताप है
चंडी हृदयस्थ हुई रक्त अभिषेक किये
वीरों में सुरत्नमौलि रणाश्री प्रताप है।
[राष्ट्रकवि डॉ बृजेश सिंह के महाकाव्य ‘आहुति’ से]

आग  बरसती हो पर जिसको,
आगे बढ़ने की लय थी।
शस्त्र-हीन घिर जाने पर भी
जिसकी जय आशा-मय थी।
रोम –रोम जिसका वैरी था,
जो सहता था दुःख पर दुःख।
काँटों के सिंहासन पर भी
शत सविता सा जिसका सुख।
भाई ने भी छोड़ दिया—
पर रखा देश का पानी है।
पाठक! पढ़ लों उसी वीर की
हमने लिखी कहानी हैं।
[हल्दीघाटी महाकाव्य से]


सुविचार
आओ लगायें घर-आँगन में
अच्छा-सा एक आम का पेड़।
खट्टा-खट्टा मीठा-मीठा
अच्छा-सा एक आम का पेड़।