शनिवार, 28 अप्रैल 2018

नर्मदा –परिक्रमा: रामघाट से श्रीयंत्र मंदिर तक


रामघाट वही घाट है, जहाँ से नर्मदा सेवा यात्रा शुरू होकर प्रदेश की सीमांत तक नर्मदा के घाट-घाट घूमकर, वापिस यहीं समाप्त हुई थी. समापन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की उल्लेखनीय उपस्थिति रही थी. घाट के बाहर सुबह से जुडी दुकानें आबाद थीं. चाय, पकौड़े, प्रसाद, सिंदूर, चूड़ी, खिलौनें, गुब्बारे; कुछ फेरी वाले भी जागरूक दिखाई दिए. घाट पर बुडकी लगाने वालों की अच्छी-खासी भीड़ थी. कुछ नियमित नर्मदा भक्त रहे, कुछ परकम्मा वासी, कुछ स्थानीय लोग और कुछ हमारे जैसे. घाट पर जगह-जगह परकम्मावासी अपना डेरा जमाये सामूहिक रूप से पूजा कर रहे थे


एक ऐसी ही पूजन की जब हमने वीडियो-रिकार्डिंग शुरू की, तो भक्तिनें और भक्त, अपनी बगलें बदलने लगे, किसी की गरुड-घंटी की आवाज तेज हो गयी, कोई नर्मदाष्टक/ आरती को ऊँचे स्वर में पढने लगा, तो कोई अपने सर से खिसके पल्लू को ठीक करने लगा, किसी का हाथ रामानन्दी तिलक लगाते-लगाते रुक गया. एक भक्त की पूजा-विधि समाप्त होने पर हमने चर्चा की तो उन्होंने बताया कि वे मणिप्रवाल (नर्मदाष्टक) का पाठ कर रहे थे, इसकी लय अपेक्षाकृत आसान तथा कर्णप्रिय है. आदिगुरु-शंकराचार्य रचित नर्मदास्त्रोत्र की प्रति भी उनके पास रही. एक परकंम्मावासी अकेले ही पूजा जमाये थे, उन्होने बताया कि वे खण्डवा निवासी हैं, पिछले साल घरवाली के सिधारने के बाद दुनिया में अकेले हैं, हाँडिया से परिकम्मा उठाई है, समुद्र की फेरी लगा चुके है, दो दिन से यहीं है. परसों शिवरात्रि (शिवरात्रि को उद्गम स्थल पर बड़ा मेला लगता है) को, नर्मदा जी का जल लेंगे और महाकाल पर ले जाकर चढ़ायेंगे”. ‘रास्ते में कोई साथ नहीं मिला?’ प्रश्न पर उन्होंने सूफियाना अंदाज में बताया कि - “मैं अकेला ही चला था जानिब--मंजिल मगर, लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया.लीला भाभी कुछ महिलाओं से घुल-मिलकर बातें कर रहीं थीं, पता चला, परकम्मावासियों में उन्हें कुछ इंदौर के लोग मिल गये. वैसे भी, इन नर्मदा-भक्तों में -   

याचक मिले,योगी मिले, रोगी मिले, भोगी मिले,
साधू मिले,सन्यासी मिले,प्रवासी, आदिवासी मिले,
गुरु मिले ,चेले मिले, सत्संगी और अकेले मिले,
क्रेता और विक्रेता मिले, अनुयायियों संग नेता मिले,
जिन्होंने बांटा नर्मदा-जन्य अनुभूतियों का प्रसाद.
जाना दोनों किनारों के लोगों की
भाषा-भूषा, बानी-बोली, संस्कृति और जीवन.
विभिन्न अनुभवों और आलोक से भर गया हमारा अंतर्मन.

मेरु-मेखला से निकलकर राजकुमारी रेवा का यह प्रथम दिव्य-दर्शन है, वे अपने दांये-बांयें दो सशस्त्र अंगरक्षक; विन्ध्य और सतपुड़ा के साथ निकली हैं. उनकी रजत-पायजेबों की रुन-झुन से वातावरण मादक और संगीतमय बना रहता है. अपनी पिछली यात्राओं में हमें यह हिस्सा, जहां अब रामघाट स्थित है, ज्यादातर सूखा ही दिखा और तब, लोगों का कहना रहा कि आशुतोषी-नर्मदा यहाँ विलुप्त हो गयीं हैं और आगे कपिल धारा में दर्शन देती हैं. परन्तु ऐसी कपोल-कल्पनाओं को नकारते हुए प्रदेश के जल-अभियंताओं ने नर्मदा के अनवरत प्रवाह को संरक्षित करने का प्रशस्य-प्रयास किया है. दोनों तटों पर सघन-वृक्षारोपण, मृदा कटाव रोकना तथा साफ-सफाई के प्रति जागरूकता जैसी पहल से नर्मदा के तटबंध हरे-भरे और विशाल जलराशि साफ-सुथरी दिखाई दे रही थी, इतनी स्वच्छ कि उसका जल, आचमन करने में कोई हिचक नहीं हुई. घाट से सुनिश्चित दूरी पर सुलभ-शौचालय भी संचालित मिला. बस! घाट पर नहाते समय साबुन लगाने, कपडे धोने और नस मंजन-दातौन-ब्रश करने वालों पर कठोर प्रतिबन्ध होना चाहिए.

हमने, स्नान-पूजन पश्चात् उदगम-कुंड से 5 लीटर के कन्टेनर में पवित्र तीर्थ-जल संग्रह किया. सोच यह रही कि इस पानी को मानक (standard) मान कर रखेंगे और जब किसी स्थान पर नर्मदा जल के प्रदूषित होने की अफवाह उडती है तो उद्गम के मानक-जल से उसकी तुलना करेंगे. दूसरे; यह पानी कितने दिनों तक पीने योग्य रहता है, कभी अपनी प्रयोगशाला में परीक्षण करायेगे.


नर्मदा मंदिर के पूर्व में रंगमहला है, कहते है यही युवराज्ञी नर्मदा का महल था, अब यहाँ केशवनारायण का मंदिर है. इस संकुल में कुछ-और प्राचीन मंदिर हैं, सूचना-पटल बताते हैं कि इनका निर्माण कलचुरी राजा कर्णदेव (1042-1072 .) के काल में हुआ, परन्तु अलग-अलग मंदिरों में स्थापत्य की अलग-अलग शैलियाँ सहज संभ्रम उत्पन्न करतीं हैं. जैसे; तीन गर्भ वाला शिव मंदिर सप्तरथ शैली में बना है, खुरदरे लाल-पत्थर से बने इस मंदिर के तीनों शीर्ष नागर-शैली के हैं. जबकि मच्छेन्द्रनाथ मंदिर में 16 स्तंभों पर आधारित मण्डप और कलिंग-शैली का शिखर है. वहीँ पंचरथ-शैली में 16 खम्बों पर सधे मण्डप सहित पातालेश्वर मंदिर में भूमिज-शैली का गर्भ गृह है. हो सकता है कि कालांतर में कर्णदेव की परवर्ती पीढ़ी की अभिरुचि भी इनमें सम्मिलित होती गयी होगी.

नर्मदा मंदिर से एक किलोमीटर दक्षिण में सोनमुड़ा के मार्ग पर श्रीयंत्र महामेरु मंदिर मिला, 52*52*52 फीट का घनाकार मंदिर निर्माणाधीन है, वहां हम-जैसे सामान्य लोगों का प्रवेश निषेध रहा. वहां मिले एक पंडितजी ने बताया कि - “उनके गुरुदेव शुकदेवानंद इस निर्माण के लिए संकल्पित हैं”. जानकारी में उन्होंने यह भी जोड़ा कि एक करोड़ तीर्थों में स्नान या चारों धाम की यात्रा से जो पुण्य-फल मिलता है, वही श्रीयंत्र के दर्शन से मिलेगा”. ‘मंदिर भक्तों के लिए कब खुल जावेगा?’ हल्की मुस्कराहट के साथ जबाब मिला, “राम जाने.