रविवार, 27 जुलाई 2014

नमामि गंगे

बात तब की है, जब सरस्वती थी, यमुना थी परन्तु गंगा नहीं थी। तब, आर्यावर्त में सूर्यवंशी राजा सगर का साम्राज्य था। उनके राज्य में एक बार भयानक अकाल पड़ा, प्रजा बूँद-बूँद पानी के लिए तरस गई। खेतों में दाना भी नहीं उगा। राजा ने अश्व (१)- मेघ यज्ञ (२) किया। स्वर्ग के राजा (३) इन्द्र ने ईर्ष्यावश यज्ञ का घोडा चुराया और कपिल मुनि के आश्रम में छिपा दिया। 60 हजार सगर-पुत्रों (४) ने मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। निर्दोष-कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में सगर-पुत्र जल गए (५)। उनके उध्दार हेतु पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रयास हुए। असमंजस पीछे, अंशुमान, दिलीप और अंत में भागीरथ ने गंगा को स्वर्ग से उतारा (६), भगवान शिव की जटाओं से होकर (७) गंगाजी धरती पर आयीं और सगर-पुत्र जीवित हो गए (८)।
आर्य्यन-विजय' में ठाकुर हरनामसिंघ चौहान लिखते हैं- 
हिमालय से उतरा हुआ जल अनेक मार्गों से बहकर यमुना में मिलता होगा, उसके द्वारा छोटी-छोटी नदियाँ और नाले बन गये होंगे। यह पानी अपनी गति बदलने से आर्यों के ग्रामों को नष्ट-भ्रष्ट कर देता होगा। सत्य प्रतिज्ञ महाराजा भगीरथ ने गंगोत्री पर्वत से उतरे जल वेग की धारा को एक निश्चित मार्ग से ले जाकर यमुना में मिला देने का निश्चय किया। 
"रामायण के बालकाण्ड" श्लोक 19/31-34 का सार इस प्रकार है-
आकाश स्वरूपा गंगोत्तरी पर्वत से उतरे जल को बड़े -बड़े पर्वत टीलों को काटकर आर्यावर्त की भूमि पर नहर के समान जलमार्ग बनाते हुए चले। रथ पर सवार महाराजा भागीरथ आगे-आगे बढ़ते जाते थे और उनके पीछे-पीछे नहर तैयार होती जाती थी। भागीरथ जी के इस अद्भुत कार्य को देखकर देवता जय-जयकार करने लगे।"
पतितों को पावन करने वाली माहात्म्यमयी गंगा आज प्रदूषित होकर सामान्य सी नदी बनकर रह गयी है।प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जनता से वादा किया है, गंगा को साफ करने का। उन्होंने गंगा पुनर्जीवन मंत्रालय भी बनाया है। साध्वी सुश्री उमा भारती को उसकी कमान सौंपी है, लेकिन यह केवल शासन तंत्र से संभव नहीं, सबका सहयोग चाहिए। आपका भी।
(१) ऋग्वेद के मंडल 3-4 में अश्व का अर्थ यंत्र आया है। हो सकता है, उस समय यंत्र अश्व के रूप जैसा हो, जो मिट्टी कटाई, खुदाई के काम आता हो।
(२) यंत्र-योजना (यजुर्वेद 18-9)।
(३) स्वर्ग के राजा इंद्र-वर्तमान हरियाणा, पंजाब, दिल्ली का राजा।
(४) 60 हजार सगर-पुत्र -राजा सगर अपनी प्रजा को पुत्रवत स्नेह करते थे। शायद, उस समय आबादी 60 हजार हो।
(५) जल गए-जल के अभाव में प्रजा मृतप्राय हो गयी।
(६) गंगा को स्वर्ग से उतारा-गंगा के उद्गम (गंगोत्री) से गंगा सागर तक धरातल में लगभग 5000 मीटर का अंतर है। अतः पुराणों में गंगा के स्वर्ग से उतारने की परिकल्पना की गई।
(७) भगवान शिव की जटाओं से-स्कन्द पुराण के अनुसार महादेव जी पहाड़ी क्षेत्र के क्षत्राधिपति थे। उनकी राजधानी कैलाश (तिब्बत) थी। भागीरथ ने उनसे पर्वत श्रृंखलाओं से होकर जलधारा ले जाने की अनुमति माँगी और वे सहमत हो गए। अमिश त्रिपाठी ने उपन्यास 'मेहला' में इसकी चर्चा की है।
(८) सगर-पुत्र जीवित हो गए-गंगा के मैदानी क्षेत्र में पदार्पण से सिंचाई एवं पीने के पानी की सुविधा बढ़ गई, बंजर जमीन लहलहा उठी, समृध्दि हुई, अर्थात प्रजा (सगर-पुत्र) जीवित हो गए।

क्षत्रिय सभा ने किया सम्मानित


पिछले दिनों क्षत्रिय सभा, जबलपुर ने समर्पित सामाजिक सेवाओं के लिए सुरेन्द्र सिंह पँवार को सम्मानित किया। चित्र में स्मृति-चिन्ह भेंट करते ठाकुर सुभाष सिंह गौर, संरक्षक क्षत्रिय सभा एवं मंचासीन डॉ (श्रीमती) अंजू सिंह बघेल, ठाकुर रज्जन सिंह बैस, अध्यक्ष क्षत्रिय  सभा, ठाकुर पंचम सिंह (पूर्व-अध्यक्ष) तथा संचालन करते सरदार सिंह राजपूत।