शनिवार, 10 मई 2014

अमृत-सरोवर (सर)

सुबह कुछ विलम्ब से हुई। तैयार होकर १० बजे दुर्गिअना मंदिर पहुँचे। स्वर्ण मंदिर के पैटर्न पर बना मन्दिर, चारोँ तरफ़ सरोवर, उसमेँ तैरती रंग बिरंगी मछलियां, मन्दिर में स्थापित भव्य देव प्रतिमायें और राधाकृष्ण सत्संग द्वारा संकीर्तन से निर्मित भक्तिमय वातावरण। श्रद्धाभाव से ओत-प्रोत हमारा अगला पड़ाव रहा श्री हर मन्दिर साहिब, जिसे श्री दरबार साहिब या स्वर्ण मन्दिर भी कहते हैं। सिक्खों का पवित्र एवं केंद्रीय पूजास्थल है।
सिक्खों के पांचवे गुरु श्री अर्जुन साहिब ने इसकी संकल्पना एवं डिज़ाइन की तथा निर्माण करवाया। अमृत-सर नाम उस पवित्र सरोवर के कारण पड़ा जिसका निर्माण १५७० में सिक्खों के तीसरे गुरु रामदास ने स्वयं अपने हाथों से किया था। पूरा स्वर्ण मंदिर सफ़ेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी दीवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गयी है। सिक्ख स्थापत्य-कला का यह बेहतरीन उदाहरण है। दीवारों पर उकेरी इबारतें बतलातीं हैँ कि इस मन्दिर का निर्माण दिसंबर १५८५ से अगस्त १६०४ के मध्य हुआ। इसकी नींव मुस्लिम संत हज़रात मियाँ पीर (लाहौर) ने रखी थी।
काल के थपेड़े खाता यह पवित्र स्थान कई बार क्षतिग्रस्त हुआ परन्तु समर्पित धर्मालम्बियों/कारसेवकों के श्रम से पुन: प्रतिष्ठा स्थापित हो गयी।
शिल्प और सौन्दर्य की अनूठी मिसाल इस मन्दिर की नक़्क़ाशी (इंटीरियर) और बाह्य सुंदरता देखते ही बनती है। गुरुद्वारे के चारों ओर चार दरवाजे हैं जो चारोँ वर्णों के लिये खुले हैं। कट्टरपन्तियों द्वारा जब अनेक मन्दिरों में कुछ जातीयों का प्रवेश वर्जित था, तब यह मन्दिर सर्व-सुलभ था और है।
गुरुद्वारा प्रबन्धन कार्यालय से जानकारी मिली कि यहाँ ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। २२८ कमरे और १८ बड़े हॉल है। साफ़ सुथरी व्यवस्था देखकर लगा कि काश! हमने पूर्व में इंटरनेट पर सर्च किया होता तो यहाँ रुकने का लुफ़्त ले पाते।
सरोवर में लोगों को नहाने/डुबकी लगाने की अनुमति है। सरोवर का पानी लगभग रोज़ बदला जाता है, इसके लिये फिलटरों की व्यवस्था है। पांच से दस वर्षों में पुरे सरोवर की सफ़ाई होती है।
स्वर्णमंदिर परिसर में नंगे सिर प्रवेश की मनाही है। आज दर्शनार्थियों की लम्बी कतार रही। लगभग एक घंटे प्रतीक्षा के बाद पवित्र मन्दिर के गर्भगृह में प्रवेश मिला जहाँ हमने अपने परिजनों सहित पवित्र गुरुग्रंथ साहिब को मत्था टेका और अपना सौभाग्य माना। बाहर आकर अमृत चखा।
स्वर्णमंदिर में आने वाले हर व्यक्ति के लिये यहां लंगर में निःशुल्क प्रसाद की व्यवस्था है। लंगर चौबीस घंटे चलता है। लंगर में खाने-पीने की व्यवस्था गुरुद्वारा प्रबंधन समिति की ओर से नियुक्त सेवादार करते हैं। वे यहाँ आने वाले लोगों (संगत) की सेवा में भी योगदान करते हैं। हमें बतलाया गया कि लगभग ४०,००० लोग प्रतिदिन यहाँ लंगर में भोजन प्रसाद प्राप्त करते है। हमने भी अपने परिजनों सहित लंगर में बैठकर प्रसाद पाया। आत्मा तृप्त हो गयी। धन्यवाद सेवादारों को, प्रबंधन समिति को और वाहेगुरु को।