मंगलवार, 4 अगस्त 2020

रोम रोम में राम

14 वर्ष के वनवास के बाद प्रभु श्री राम अपनी भार्या जनकदुलारी सीता जी और भ्राता लक्ष्मण लाल जी के साथ जब अयोध्या लौटे तो उन्हें अपना घर-परिवार राज्य,सुख सुविधा, सभी कुछ यथावत मिल गया। विडंबना तो देखिए, अतिक्रमित जन्मस्थली पर भगवान का मंदिर बनाने का अधिकार मिलने में हमें 500 वर्ष लग गए। यदि इस प्रतीक्षा को उनकी मानवीय लीलाओं का एक अंश मानें तो वह दिन गया जब हम सीना ठोककर कह सकते हैं कि हम मंदिर वहीं बना रहे हैं, जहां हमारे प्रभु प्रगटे थे और जहां उन्होंने अपनी लौकिक लीलाओं से इस धरा धाम को स्वर्ग सा सुंदर होने का सौभाग्य प्रदान किया। "मंदिर" यानी सर्वव्यापी आराध्य श्रीराम का घर। मंदिर का शाब्दिक अर्थ घर ही होता है। भव्य सुसज्जित तिमंजिला मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में श्री राम लला विराजमान रहेंगे, दूसरे मंजिल के गर्भगृह में राम दरबार रहेगा, परंतु तीसरी मंजिल के गर्भ में क्या होगाइसकी प्रतीक्षा करनी होगी। 

 

प्रस्तावित राम मंदिर 

उच्चतम न्यायालय ने पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर उस विवादित भूमि का आधिपत्य श्री राम लला विराजमान और उनके सहयोगी पक्षकारों को दिया जबकि बाबरी मस्जिद के पैराकारों को अलग से जमीन देने का निर्णय लिया। माननीय उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार भारत सरकार द्वारा गठित राम जन्मभूमि ट्रस्ट और सभी राम भक्तों के आपसी सहयोग और सद्भावना से निर्मित होने जाने वाले इस देवालय का प्रारंभिक खाका 1989 में वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा ने विश्व हिंदू परिषद के अनुरोध पर तैयार किया था और तभी श्रद्धालु और संत जनों के अभूतपूर्व उपस्थिति में राममंदिर का भूमि पूजन कर पहली शिला कामेश्वर चौपाल के कर कमलों से रखी गई थी, लेकिन कल और आज की स्थिति में भिन्नता है। तब संगीनों के साये में, दहशत के वातावरण में शिलान्यास किया गया था अब बंदूकों की सलामी के साथ, प्रेम और सौहार्द के वातावरण में यहां तक कि पहला आमंत्रण पत्र (श्री राम लला विराजमान और हनुमान लला के बाद) बाबरी मस्जिद के पैरोकार मुहम्मद इकबाल अंसारी को दिया और उनकी सुनिश्चित उपस्थिति और साधु-संतों की अगुवाई में एक अभिजीत मुहूर्त पर देश के प्रधान सेवक माननीय नरेन्द्र मोदी जी मंदिर की नींव का पूजन अर्चन कर शुरुआत करेंगे। वास्तु पूजन की सामग्री के साथ ताम्र पत्र पर उकेरा राम मंदिर का टाइम कैप्सूल भी रखा जाएगा।

 

उल्लेखनीय है कि पूर्व प्रस्तावित राम मंदिर के खाका में आंशिक परिवर्तन कर नवीन नक्शा तैयार कर राम मंदिर का कार्य विधि विधान से किया जा रहा है। इस भूमि पूजन के लिए देश भर की पवित्र नदियों और सरोवरों का जल एकत्रित किया गया है, विशेषकर उत्तर में कैलाश मानसरोवर तथा सुदूर दक्षिण में रामेश्वरम तीर्थ का समुद्री जल। हमारा परम सौभाग्य है कि इस नगर के गौरव परमपूज्य महामंडलेश्वर श्यामानंदाचार्य जी महाराज, श्री राम जन्म भूमि ट्रस्ट के आमंत्रण पर पुण्य सलिला मां नर्मदा की पवित्र मिट्टी और पानी लेकर अयोध्या पहुंच चुके हैं।

 

रामालयनिर्माणाधीन राम मंदिर 270 फीट लंबा,140 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊंचा होगा। यह मंदिर उत्तर भारत की प्रचलित नागर शैली का प्रतिनिधित्व करेगा। नागर का आशय नगर से है, नगरी सभ्यता के उदय के साथ इसका विकास माना जाता है,विशेषकर उत्तर भारत में। इतर इससे दक्षिण भारत में प्रचलित मंदिर स्थापत्य की द्रविण शैली कहलाती है। प्रस्तावित मंदिर में उत्तर भार तीय मंदिरों के समान वर्गाकार गर्भ गृह, स्तंभ वाला मंडप तथा गर्भ गृह के ऊपर एक रेखीय शिखर से संयोजित है। मंदिर के चारों ओर परिक्रमा के लिए स्थान रखा गया है। इस मंदिर में एक साथ 10000 श्रद्धालु दर्शन लाभ ले सकेंगे।

 

दिव्य मंदिर के पूर्व खाके में 5 हिस्से प्रस्तावित रहे, गर्भ गृह कोली, रंग मंडप, नृत्यमंडप और सिंहद्वार। परंतु 33 फीट शिखर बढ़ने से मंदिर का आकार बदल गया अब गर्भगृह और रंग मंडप के मध्य गूढ़ मंडप होगा, दाएं बाएं अलग-अलग कीर्तन प्रार्थना मंडप। मंदिर सूत्रों के अनुसार, मंदिर के मुख्य शिल्पी चंद्रकांत सोमपुरा ही हैं जिन्होंने 1992 विश्व हिंदू परिषद के अनुरोध पर कदमों विवादित क्षेत्र को कदमों से नापकर मंदिर का खाका तैयार किया था।कहना नहीं होगा कि इन्हें और उनके परिवार को देश के 77 लब्ध प्रतिष्ठित मंदिरों का नक्शा तैयार करने का अनुभव है गुजरात का सोमनाथ मंदिर, अक्षरधाम तथा केदारनाथ मंदिर का पुनर्नि्माण सम्मिलित है। आशीष और निखिल सोमपुरा जो स्वयं भी इंजीनियर / आर्किटेक्ट है इस कार्य में अपने पिता के सहयोगी की भूमिका निर्वाह कर रहे हैं। आर्किटेक्चर और कंसलटेंसी से जुड़ी अनेकों कंपनियों ने मंदिर निर्माण की भागीदारी में अपनी रुचि दिखाई। मंदिर सूत्रों के अनुसार एल एंड टी को इसकी अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है, जिनके पास दिल्ली का लोटस मंदिर, गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा और पुटपुर्थी के चुनौती पूर्ण निर्माण कार्यों का अनुभव है।

 

एक प्रारंभिक आकलन रहा कि मंदिर निर्माण में 75000 घन फीट पत्थर तराशे जा चुके हैं, जबकि मंदिर की लंबाई चौड़ाई ऊंचाई विस्तार से अधिक मात्रा में (अनुमान से 2.75 लाख घन फुट) की आवश्यकता होगी। अभी तक लाए और तराशे हुए पत्थर बंशीपुर पहाड़ (भरतपुर, राजस्थान) से लाए गए हैं इन्हें बलुआ पत्थर (सेंड स्टोन) कहते हैं यह अपने कैटेगरी का बेहतर पत्थर है, पानी के रिसाव और रंग बदलने की दिक्कत को दूर करने के लिए इन पर केमिकल कोडिंग की जा रही है। यह भी दावा किया जा रहा है कि ये पत्थर पूरी तरह से सुरक्षित और लंबी उम्र तक टिकेंगे। अक्षरधाम मंदिर में इसी पत्थर का प्रयोग किया गया है। कार सेवा के दौरान संग्रहित शिलाए, जिन पर श्रीराम खुदा हुआ है उन्हें भी यथा स्थान पर प्रयोग किया जाएगा। यह भी स्पष्ट किया गया कि मुख्य द्वार मकराना के सफेद संगमरमर से बनाया जाएगा।

 

तीन मंजिल की संरचना में तीन सौ बीम होंगी और 318 कॉलम (स्तंभ/ खंबे) प्रत्येक मंजिल पर 106 स्तंभजिन का व्यास 8 फुट और ऊंचाई 14 से 16 फुट रहेगी प्रत्येक स्तंभ यक्ष यक्षिनियों की 16 मूर्तियों से सज्जित होगा। गर्भ गृह के ऊपर की टावर नुमा संरचना (शिखर) लगभग 65 फुट एक रेखीय होगी। चारऔर उपशिखर होंगे, कुल मिलाकर पांच। पूर्व में यहां एक शिखर और दो उपशिखरों का प्रावधान था। मंदिर की कुल ऊंचाई 161 फीट है। शिखर पर स्वर्ण जड़ित कलश होगा। दक्षिण भारत के मंदिरों पर 200 से 250 फीट ऊंचे शिखर हैं जबकि 39 वर्ष पूर्व हिमाचल के सोलन में बना मंदिर फिलहाल सबसे ऊंचा है। भगवान के ऊंचे दर्जे का ध्यान रखते हुए मंदिर कि जगती (चबूतरा) ऊंचा और मुख्य प्रवेश द्वार छोटा रखे जाने की प्रथा है।जगती पर पहुंचने के लिए 16 फीट चौड़ी सीढ़ियां होंगी। प्रस्तावित मंदिर में दक्षिण दरवाजा (एंट्री गेट) गोपुरम काफी बड़ा रखा गया है। वास्तव में प्रवेश द्वार छोटा होने के पीछे यह धारणा रहती होगी कि हम अपना सारा अहम तिरोहित कर उस सर्वशक्तिमान के दर्शन के लिए जाएं। इस मंदिर की दीवारों में पत्थरों की जुड़ाई में सीमेंट और लोहा का उपयोग नहीं किया जाएगा, मंदिर निर्माण की परम्परागत शैली में मेल फीमेल जॉइंट से पत्थरों की दीवारें टिकी रहेंगी। संपूर्ण संरचना की डिजाइन रिक्टर स्केल के आठ से 10 तीव्रता वाले भूकंप को झेलने में सक्षम रहेगी वैसे समूचा उत्तर प्रदेश भूकम्प के संवेदनशील जोन चार में आता है जबकि अवध का क्षेत्र जोन 3 में। मंदिर के वास्तुकार का यह दावा है कि बड़े से बड़े जलजले भी इस संरचना का बाल बांका नहीं कर पाएगा। मंदिर मजबूत बने इसलिए जरूरी है उसकी मजबूत नीव, साथ ही आधार की मिट्टी, जो संरचना के भार को वहन कर सके। मिट्टी की पहचान के लिए 200 फुट गहरे तक मिट्टी का परीक्षण किया गया है और 60 से 70 फीट गहरी नींव रखे जाने की योजना है।

 

इस संपूर्ण संरचना के निर्माण में साढे 3 वर्ष का समय लगेगा और लगभग 100 करोड़ रुपए लागत का प्रारंभिक आकलन है जिसे एक करोड़ समर्पित परिवारों से दान के रुप में एकत्रित करने की योजना है। वास्तु कार का कहना है कि श्री अयोध्या धाम को अपना अस्तित्व पाने में  500 साल संघर्ष करना पड़ा, लिहाजा उससे दुगुनी उम्र यानी 1000 वर्षों तक संरचना का वैभव और सौंदर्य का अक्षुण्य रहेगा। यह सहज संभव भी है यथा,खजुराहो के मंदिर 800 सालों से खड़े हैं कंबोडिया में कई मंदिर इससे भी पुराने हैं। इस मंदिर में अयोध्या धाम में नव निर्माण के शंखनाद के साथ ही निर्माण विभागों ने विकास की योजनाओं का श्री गणेश कर दिया है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने दूसरे शहरों से जोड़ने वाली सड़कें और 84 कोसी परिक्रमा मार्ग के कायाकल्प की तैयारी कर ली है परिक्रमा पथ को नए सिरे से सजाया संवारा जा रहा है और सरयू नदी पर बनने वाले दो सेतु प्रत्येक 1 किलोमीटर लंबा भी शामिल हैं। वन पथ गमन की 898 करोड़ की परियोजना डीपीआर परीक्षण अधीन है। 40 करोड़ लागत से वायपास और 15 करोड़ से सौंदर्यकरण योजना भी प्रक्रियाधीन है।अयोध्या से सीधे चित्रकूट सड़क मार्ग जोड़ने की सुदूर योजना है। अयोध्या रेलवे स्टेशन का जीर्णोद्धार हो रहा है जून 2021 तक रेलवे स्टेशन नए कलेवर में राम जन्म भूमि में आने वाले देशी विदेशी सैलानियों के स्वागत के लिए तैयार रहेगा। 84600 वर्ग फीट तीर्थ क्षेत्रमें नगर नियोजन कर श्रद्धालुओं को मूलभूत सुविधाएं जुटाने की भी तैयारी शुरू हो चुकी है। 

 

और अंत में जैसा कि राम मंदिर के न्यायालय में वाद के दौरान माननीय जज ने प्रश्न किया था क्या श्री राम के कोई वंशज हैं यदि है तो वे प्रमाण दें। मन बड़ा खिन्न हुआ कि हमें इस देश में अपने पूर्वजों की, अपने गौरव की, अपनी संस्कृति की,अपनी अस्मिता की प्रामाणिकता सिद्ध करना होगी,तभी मैंने एक दोहा लिखा था-

 

हम वंशज रघुनाथ के, धरा अयोध्या धाम।

दीन दया सत पालते, रोम रोम में राम।।

 

वह तो अच्छा हुआ कि जन्मभूमि विवाद बहुसंख्यकों के पक्ष में रहा और हम वहां भव्य मंदिर का निर्माण करने जा रहे हैं।