शनिवार, 16 नवंबर 2013

देहु शिवा वरदानु मोहि

स्वामी विवेकानन्द ने मानव समाज को चार प्रमुख जातियों में वर्गीकृत किया है ---


योध्दा वर्ग में वे सभी आते हैं , जिन पर समाज की सुरक्षा (आंतरिक एवं बाह्य )की जिम्मेदारी रही। गीता के 18 वें अध्याय में वर्णित "शौर्य ,तेज ,धैर्य ,निपुणता ,युध्द से पलायन न करना ,दानशीलता और ईशवर -भाव" जैसे श्रेष्ठ गुणों से विभूषित जातियाँ "क्षत्रिय "कहलाती हैं।
कर्नल टाड ने क्षत्रिय /राजपूतों को योध्दा (मार्शल कॉस्ट) वर्ग में रखा है। ठाकुर गुलाबसिंह राठौड़ नेअपने आलेख "क्षत्रिय धर्मं -संरक्षण क्यों "(सूर्ययश -2012) में इन्हें मार्शल कौम कहा है।
डॉ नरसिंह परदेशी का एक शोध पत्र (मध्य काल में दक्खन अभियानों में राजपूत सरदारों का योगदान) में राजपूतों को "लड्वैय्या "श्रेणी में रखता है।
वीरगाथा काल में रचित महाकाव्य "आल्हा "में गाया जाता है ----
आल्हा ऊदल बड़े लड़ैया ,उनकी बात कही न जाये।
बाबा तुलसी ने खर -दूषण प्रसंग में-धर्म को वास्तविक रूप से परिभाषित किया है -

इसी भाव को आगे बढ़ाते हुए गुरु गोविंदसिंह जी ने लिखा है -----

एक क्षत्रिय वीर की ,एक योध्दा की इससे अच्छी परिभाषा नहीं हो सकती।