प्रसिद्ध कवियित्री सुभद्राकुमारी चौहान की कविता 'जलियाँवाला बाग में बसंत' बचपन से कंठस्थ है-
तारीख थी १३ अप्रैल १९१९। प्रवेश के साथ ही शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गयी। इतना बड़ा नरसंहार, जिसमे १००० व्यक्ति काल कवलित हुए और लगभग २००० व्यक्ति घायल हुए। सूचना पटलों पर लिखी इबारतें बतलाती है कि रौलेट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन की योजना बनाते लगभग २०,००० व्यक्ति उस पार्क में थे-वृध्द, महिलाएं और बच्चे भी। दिन बैशाखी का था। इतिहास का यह सत्य है कि जनरल डायर ने अकारण निहत्थों पर गोली चलवाई। कहते हैं १० मिनट में १६५० राउंड गोली चली।
काले-काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।
कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक कुल से,
वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे,
परिमलहीन पराग दाग सा बना पड़ा है,
हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है,
ओ प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे आना
यह है शोकस्थान यहॉं मत शोर मचाना।
और इसीलिए, अधिक उत्सुकता रही, उस बाग, उस शहीद स्थल को देख़ने की-जो स्वर्णमंदिर परिसर से बस कुछ कदम की दूरी पर है। बाग़ के बाहर एवं अंदर देशी-विदेशी सैलानियों की अच्छी ख़ासी भीड़ रही।
प्रवेश के लिए एक बेहद तंग गलियारा, जिसकी दीवार पट्टिका पर लिख है, यहाँ से अंग्रेज़ जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था।
तारीख थी १३ अप्रैल १९१९। प्रवेश के साथ ही शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गयी। इतना बड़ा नरसंहार, जिसमे १००० व्यक्ति काल कवलित हुए और लगभग २००० व्यक्ति घायल हुए। सूचना पटलों पर लिखी इबारतें बतलाती है कि रौलेट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन की योजना बनाते लगभग २०,००० व्यक्ति उस पार्क में थे-वृध्द, महिलाएं और बच्चे भी। दिन बैशाखी का था। इतिहास का यह सत्य है कि जनरल डायर ने अकारण निहत्थों पर गोली चलवाई। कहते हैं १० मिनट में १६५० राउंड गोली चली।
प्रवेश द्वार के समीप शहीदों की स्मृति में एक अमर ज्योति जलती रहती है, जिसे देखकर आँखें नम हो गयी। प्रणाम करते हुए उन अनाम शहीदों को कृतज्ञता ज्ञापित की जिनके महान बलिदान का प्रतिफल-आज हम स्वतन्त्र है।
पार्क के मध्य में अमेरिकन डिज़ाइनर बेंजामिन पोक का डिज़ाइन किया स्मारक बना है। और इसी के आसपास सुरक्षित संरक्षित है गोली और खून के निशान। हम सभी कल्पना करने लगे कि एक भीड़ पर अचानक गोलीबारी हो तो प्राण बचाने के लिये लोग कैसे-कैसे भागेंगे? जब कोई रास्ता बाहर निकलने एवं भागने को नहीं मिला तो लोग दस फुट ऊंची दीवार पर चढ़ गये। दीवारों पर ऊँचाई तक उभरे निशान इसकी संपुष्ठि करते हैं। बाग़ में बना कुआँ जो अब बन्द है पर लिखा है कि '१२० शव तो कुँए में मिले'।
इस हत्याकांड ने समूचे देश में एक दहशत पैदा कर दी। ब्रिटिश एक्ट पालन न करने की स्थिति में अंजाम यहाँ तक हो सकता है। गुरुवर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने क्षुब्ध होकर 'सर' की उपाधि लौटा दी। उधम सिंह ने लंदन जाकर डायर को गोली मारकर काण्ड का बदला लिया। यह अलग बात है कि वे वहाँ पकडे गये और उन्हें मौत के घाट उतारा गया।
अंग्रेज़ डायर को अपने इस कृत्य पर कोई पछतावा नहीं रहा। यहाँ तक हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स ने जनरल डायर की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। श्रद्धा के फूल अर्पित कर हमलोग बाग से बाहर आये परन्तु लगभग सौ वर्ष पूर्व के इन कारुणिक दृश्यों ने हमारे मन मस्तिष्क को झिंझोड़कर रख दिया।

