शुक्रवार, 9 मई 2014

जस्ट डायल

दिल्ली मीटिंग पॉइंट था। ऋषि लखनऊ से आया, अबीर थाणे से। हम आठ इकठ्ठे होकर अमृतसर को रवाना हुए। हमसे एक चूक हो गयी, शताब्दी के बदले जनशताब्दी का रिज़र्वेशन रहा। धीमी गति, लेट होती ट्रैन और थका देने वाली अंतहीन यात्रा ने घङी की तारीख बदल दी। मौसम भी कुछ नाराज़ था, पानी गिरा, ठंडी हवा चलने लगी।

रास्ते में सहयात्रियों से चर्चा की कि अमृतसर में कहाँ रुकें? उन्होंने बतलाया वीकएंड होने से वहाँ बहुत भीड़ है। स्वर्ण मंदिर में जगह है ही नही, आसपास के हॉटेल भी फुल हैं। रात्रि के १:०० बजे हम परिजनों के साथ कहाँ भटकें! अचानक सौरभ को याद आया 'जस्ट डायल' 8888888888, अपना बजट, यात्री संख्या और लोकेशन बतलाई। तुरंत ही हमारे पास ४-५ हॉटेल के नंबर/नाम एस.एम.एस पर आ गये। हमलोग उन्हें देख ही रहे थे कि एक हॉटेल का कॉल आ गया। चर्चा हुई, हॉटेल का पता और स्टेशन से ऑटो पकडकर पहुँचने की सलाह भी दी। जान में जान आई।

जैसे-तैसे अमृतसर रेलवे स्टेशन पर पहुँचे। परन्तु वहाँ का नज़ारा कुछ अलग ही दिखा। पानी ने वहाँ की फ़िज़ा ही बिगाड़ दी। सर्वदा पानी ही पानी। विलम्ब से एक ऑटो मिला, परन्तु वह अपने नियत हॉटेल ले जाने ही राज़ी हुआ। ख़ैर उसका मन रखने के लिये हमने दो-तीन हॉटेल देखे। सीमित चॉइस, मनमाफ़िक दरें; रात्रि में नये अजनबी शहर में अपनी मन मर्ज़ी नहीं चल पाती।  ऑटो वाला बार-बार उन्हीं हॉटेल में ठहरने पर ज़ोर दे रहा था। शायद, उसका अपना निजी स्वार्थ रहा। मजबूरन हमें जस्ट डायल पर सम्पर्क हुए नंबर पर ऑटो चालक की बात करानी पडी। वह कुड़कुड़ाता हुआ हमें हमारे नियत ठिकाने पर ले गया। आश्चर्य! जहाँ हम ऑटो चालक से बहस में उलझे थे, उससे चन्द कदमों पर वह हॉटेल था जहाँ हमें जाना था, बड़ा सा, आलीशान।बस, मुख्य सड़क से हटकर लिंक रोड पर था। खैर! हॉटेल पहुँचने पर वहाँ का मैनेजर दरवाजे पर खड़ा प्रतीक्षा कर रहा था, उसने बताया कि हम लोगों की बातचीत हॉटेल मालिक से हुई थी। उन्हीं का अभी फ़ोन आया था कि जबलपुर से आए हमारे मेहमान हॉटेल पहुँचे अथवा नहीं। थैंक्स! परदेस में इतना रिस्पांस। हॉटेल, वहाँ का मैनेजमेंट, देर रात में खाये गरम-गरम पराठे और सुकून से आयी नींद---याद रहेगी।