रविवार, 4 मई 2014

दिल्ली राज्य

हमारी ट्रैन फरीदाबाद की सीमा पार कर रही थी, अचानक एक चॅनेज-स्टोन पर पढ़ा "दिल्ली राज्य"। मुहम्मद-बिन-तुग़लक़ से लेकर अरविंद केजरीवाल तक एक-एक चेहरे घूम गये। कहने को दिल्ली दिल वालों की है, परन्तु यहाँ बादशाहों को भी दो गज ज़मीन दफ़न के लिये नहीं मिली। पूरे देश का संयोजन, नियंत्रण और संचालन दिल्ली से ही होता है। यहाँ कई बार आया गया हूँ। कई-कई दिन कनॉट पैलेस और पालिका बाज़ार में घूमकर बिताए हैं। नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली की समरसता देखी है। परन्तु, इस बार दिल्ली कुछ बदली सी दिखी, डरी सी। सहमी सी!! क्यों? कह नहीं सकता।

हाँ, यह हो सकता है कि पिछली विधान सभा में दिल्लीवासियोँ ने लीक से हटकर भ्रष्टाचार हटाने का वादा करती आप (आम आदमी पार्टी) को विश्वास मत दिया। परन्तु, वे (आप) कसौटी पर कमज़ोर साबित हुए। 'आप' के नेता दिल्ली को बीच मझधार में छोड़कर भाग खड़े हुए। वैसे माना जाता है कि 'आप' सरकार चलाने की अभ्यस्त नहीं थी। आन्दोलन-प्रदर्शन के आदि 'आप' के कार्यकर्ता सत्तासीन होने पर केंचुली नहीं बदल पाये। इसमें कौन दोषी है?

  • दिल्ली का आम मतदाता, जिसने परिवर्तन चाहा। 
  • 'आप' के आलाकमान, जिन्होने दिल्लीवासियों को झुनझुना पकड़ाया, और उसे भी छीन लिया।
  • सत्ता के वे बिचौलिये, जो 'आप' के कंधे पर बंदूक रखकर निशाना साधते रहे।  
लेकिन सबसे ज़्यादा दोषी 'आप' के सरगना अरविन्द केजरीवाल ही माने जाएंगे। आनन-फानन दिल्ली राज्य की कुर्सी से पल्लू झटकते हुए पूरे देश पर कब्जा करने का दिवा-स्वप्न देखने लगे। अदूरदर्शीपूर्ण निर्णय! एक प्रदेश जिससे नहीं संभला, वह एक देश को कैसे संभालेगा? दिल्ली वालों ने जोश, जज़्बे, जुनून को वोट दिया था। भ्रष्टाचार के विरुध्द तथाकथित लड़ाई लड़ने वालों को चुना था। डर कर भागने वाले दिल्ली पर शासन नहीं कर पाते, इतिहास साक्षी है।
दूसरे, दिल्ली इसलिए भी सशंकित है कि १६ मई को नयी केंद्रीय सरकार का मुखौटा कौन सा होगा? देश की जनता ने 'वासुकी' और 'तक्षक' के मध्य फैसला किया है, दोनों विषधारी हैँ। भाजपा के नरेन्द्रमोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो सकते हैं (देश में बना मीडियाई प्रसार यही दर्शाता है)। वे गुजरात के विकास का मॉडल लेकर शहर-शहर में जता रहे हैं कि उन्होने गुजरात की कायापलट कर दी; उसी तर्ज पर वे समूचे देश में बदलाव लाएंगे। हो सकता है, उनका मिशन 272+ कामयाब हो। हो सकता है वे और उनके समर्थक उस जादुई आंकड़े को सहजता से पा लें। परन्तु यह किसी व्यक्ति या पार्टी की उपलब्धि नहीं होगी वरन आम जनता का पिछली सरकार की नाकामयाबी पर प्रदर्शित रोष होगा। डर यह भी है कि यदि मोदीजी येन केन प्रकारेण केंद्रीय सत्ता हथिया भी लेते हैं तो-
दिल्ली राज्य का मतदाता/आम आदमी का दिल भी देश के साथ धड़कता है। अभी-अभी दूध से जला था, छाँछ को भी फूँककर पी रहा है। शायद आने वाली १६ मई, एक स्थाई केंद्रीय सरकार दे और दिल्ली वासियों को राज्य के निर्वाचन हेतु पुनः दुविधा की स्थिति से ना गुजरना पड़े। यही सोचते-सोचते नई दिल्ली आ गयी। रेल विभाग की बेहतरीन योजना 'घंटी बजाओ-खाना खाओ' कमसम के टोल फ्री नंबर '11 47-100 100' पर पिछली स्टेशन से लंच बुक किया था। जिसे यहाँ हमारी बर्थ पर सर्व किया गया। हम लोगों ने सुस्वाद भोजन प्राप्त किया। ऋषि लखनऊ से आकर हमें जॉइन कर चुका था। 
हम आगे की यात्रा के लिये निकल पड़े थे।