मंगलवार, 28 जनवरी 2014

कहते हैं हमारे धर्मग्रन्थ

भोपाल के इंजीनियर जी.एस.अरोरा का सद्यः प्रकाशित "धर्मग्रन्थ " हिंदी गद्य साहित्य में डायरी नुमा विधा का अनूठा प्रयोग है। इसका फॉर्मेट बिल्कुल वही है, जो उनके पूर्व प्रकाशित-प्रशंसित "माँ ", "बेटी", "रिश्ते " नामक  संकलनों  का रहा। अरोरा जी को जो भी, जहाँ भी अच्छा पढ़ने को मिलता है-धार्मिक/साहित्यिक पुस्तकों में, दोस्तों से प्राप्त संदेशों में, समाचार-पत्रों /पत्रिकाओं में, उसे वे एकत्रित कर लेते हैं। तदुपरांत सुव्यवस्थित पुस्तकाकार में सँजोकर निःशुल्क वितरण करते हैं। श्रम, समय और पेन्शन का ऎसा उपयोग मानवता की सच्ची सेवा है।
धर्मग्रन्थ में जहाँ गीता, कुरान, बाइबिल और गुरुग्रंथसाहिब की जीवनोपयोगी सूक्तियां हैं, वहीं भारतीय आदर्श संतों एवं विचारकों के सद्विचार भी हैं-जो हमें अन्दर तक झकझोरते हैं, उव्देलित करते हैं और जिंदादिली से जीने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे ही कुछ संकलित-सुविचार:
<>जीवन निरंतर चलते रहने का नाम है। चलो, लड़खड़ाओ, गिरो, उठो और फिर चल दो।
<>यदि आप कोई बड़ा काम नहीं कर सकते तो छोटे-छोटे कामों को इस प्रकार करो कि उनका तरीका बड़ा (महान) हो।
<>अपमान और कड़वी दवा निगल जाने के लिए होती है। मुँह में रखकर चूसने के लिए नहीं होती।
<>हँसते खिलखिलाते हुए अगर आप सुबह का स्वागत करते हैं तो पूरा दिन आपका ही होता है।
<>शब्दों में पंख होना ही काफी नहीं होता, उड़ने की इच्छाशक्ति भी होना चाहिए

बीच बीच में-"मानो या न मानो" शीर्षक से कुछ ऐसे सत्य और तथ्य भी है जिन्हें हम-रोजमर्रा की जिन्दगी में आधे-अधूरे मन से स्वीकारते हैं। प्रस्तुतकर्ता का प्रयास महज तथ्यों को थोपना नहीं, बल्कि हमारे मन की कई उलझी गुत्थियों को सुलझाना भी है।
और अंत में, श्री अरोरा जी के स्वर से स्वर मिलाते हुए अपनी बात समाप्त करते हैं- 'मित्रो! इस अंक को पढने में आपको शायद ज्यादा रुचि न हो, परन्तु यही हमारी संस्कृति है, यही हमारी धरोहर है। इसलिए जब भी आपको समय मिले, स्वयं एवं बच्चों को अवश्य पढ़ाएं। क्योंकि ऐसे अंक बहुत कम ही पढने को मिलेंगे।'
अरोराजी से +919826043437 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

ई -मेल पर ठा.विजयसिंह सोलंकी ने भेजा यह प्रसंग
एक हसीन लड़की एक राजा के दरबार में डांस कर रही थी। (राजा बहुत ही बदसूरत था) निवेदन के बाद, लड़की ने एक सवाल की इजाजत तलब की।
राजा ने कहा-'पूछो।'
लड़की-'जब खुदा हुस्न तक्शिम कर रहा था तब आप कहाँ थे।'
राजा ने गुस्सा नहीं किया, मुस्कराते हुए कहा-'जब तुम हुस्न की लाइन में खड़ी हुस्न ले रही थी तो मैं किस्मत की लाइन में किस्मत ले रहा था। और देखिये, आज तुम जैसी हुस्न वालियाँ मेरी गुलाम हैं।'
इसलिए एक शायर कहता है -

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !!!

बुधवार, 15 जनवरी 2014

सूर्य उत्तरायण हो रहा है

ठण्ड और कुहासे के साथ आया,  नया साल 2014! स्वागत !!

<> वर्ष 2013 के अंतिम दिनों में साक्षात्कार के यशस्वी सम्पादक प्रो त्रिभुवन नाथ शुक्ल को पत्र प्रेषित कर उनके व्दारा इति -व्याख्यायित चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को आज की स्थिति में अन्य पिछड़ा वर्ग में रखने का आधार चाहा था। सामान्यतः जैसी उम्मीद रही, वैसा हुआ: पत्रोत्तर नहीं मिला

<> चन्द्रगुप्त मौर्य की जीवन-गाथा से जुडी अनेकों हिन्दी/ अंग्रेजी की पुस्तकें इंटरनेट पर हैं। अलावा इसके, प्राच्य -इतिहास को उकेरते अन्य शोध-ग्रन्थ एवं सहायक -साक्ष्य भी हैं जो एक स्वर में चन्द्रगुप्त मौर्य की यशकीर्ति और वंश परम्परा का  नेति -नेति बखान कर रहें हैं।
समझ में नहीं आता! आदरणीय शुक्लजी ने ईसा पूर्व के इतिहास में ऐसे सत्य और तथ्य कहाँ से ढूँढे? और तो और, वे उस धीरोदात्त नायक को आज की स्थिति में अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रमाण-पत्र जारी कर बैठे। शायद, उन्होंने भी कथावाचकों/ भाष्यकारों की कपोल-कल्पनाओं/ मिथिहास को आधार माना! शायद, वे भी चन्द्रगुप्त को मुरा नामक दासी/ नाइन /नन्द उप-पत्नी की सन्तान मानते हैं !!

<> इंटरनेट पर चन्द्रगुप्त मौर्य  (ऍम  आई  राजस्वी) के अनुसार:

"चन्द्रगुप्त के पिता सूर्यगुप्त पिप्पलीवन के गणमुख्य थे। और, उनकी माता का नाम मुरादेवी था। नन्द ने गणमुख्यों की व्यवस्था समाप्त कर दी। विरोध करने पर उसने सूर्यगुप्त का वध करवा दिया और मुरादेवी को अपनी दासी बना लिया।"

<> युध्द, सत्ता-हस्तांतरण, विजित राजा/ सामन्त की सम्पति/ अन्तःपुर पर आधिपत्य जमाना, उस समय की शासन-शैली रही। हो सकता है, नन्द ने मुरा को जबदस्ती अपनी दासी बनाया हो! हो सकता है, नन्द के रनिवास में मुरा नाम की उप-पत्नी हो!! हो सकता है, नन्द की कोई मुरा नामक नापित दासी हो!!! और, यहीं से इतिहास में संभ्रम की स्थिति बनी हो। उल्लेखनीय है कि 'नाई' अन्य पिछड़ा वर्ग में अधिसूचित है।
लेकिन प्रोफेसर साहब यह तो जानते ही हैं कि हमारे यहाँ परिवारों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था है;ना कि मातृसत्तात्मक। इतिहास में मुरा से मौर्य वंश की उत्पत्ति का राग व्यर्थ ही अलापा गया।

वास्तव में, चन्द्रगुप्त मौर्य वह शासक रहा, जिसने तत्कालीन छोटे -छोटे राज्यों को एक सूत्र में बांधकर शक्तिशाली राज्य की नींव डाली! जिसने अपने समय का प्रवाह मोड़ा!! और इसलिए उसे उस युग का महान शासक माना गया।

चलिये छोड़िये !  
सूर्य उत्तरायण हो रहा है---
अब ढ़ोल बजेगे, शहनाईयाँ गुजेंगीं, मंगल-कलश सजेंगे।                                  
शुभ  मकर  संक्रांति