सोमवार, 31 मार्च 2014

परमार राजा भोज

एक बहुश्रुत-बहुआयामी व्यक्तित्व
जिसने,
समय और सीमाओं को पीछे छोड़कर,
स्पंदित किया हमें और हमारे काल को।
जिसने,
समान रूप से वरण किया,
कलम और करवाल को।।
जिसके जीवन में एकाकार हो गये,
कर्म-चिंतन और सिद्धांत-प्रयोग।
जिसने पाया,
सरस्वती और शक्ति का विरल संयोग।।
जो गुणी था,
गुणग्राहक था।
नीतिज्ञ था,
कुशल प्रशासक था।।
जो, वास्तुकला,
फलित-ज्योतिष,
व्याकरण,
कोषकला,
औषधि-विज्ञानं,
संगीत, धर्म, दर्शन और सौंदर्य-शास्त्र में ख्यात था।
जो वीर था, 
युद्ध-कला में निष्णात था ।।
उज्जैन, देपालपुर, धार, बेटमा
और भोजपुर के शिलालेख तथा बीजक,
जिसकी विजय-कीर्ति गाते हैं।
गांगेयदेव, नरेश तैलप (गंगू -तेली)
जिसकी विरदावली सुनाते हैं।।
चित्तौड़, बांसवाड़ा, भिलसा,
खानदेश, कोंकण,
और गोदावरी। 
यहीं था, सहस्त्राब्दि पूर्व 
उस परमार राजा भोज का शासन 
जिसके न रहने से 
निराधारा हुई धारा नगरी ।।
  • राजा भोज जन कल्याण समिति के तत्वाधान में 'विक्रमोत्सव' का आयोजन 2 अप्रेल 2014 को श्री राम भवन, बिजौलिया (मेवाड़) में है। राष्ट्रीय अध्यक्ष कुँवर नरेंद्र सिंह पंवार (9229195731/8989466477) ने उपस्थिति की अपील की है। 
  • चक्रवर्ती सम्राट महाराजा भोज स्मारिका हेतु आलेख rajabhojdhar@gmail.com पर आमंत्रित हैं। 
  • इंदौर से रजनी पंवार का सन्देश -
            नव वर्ष मंगल मय हो,
            नव दीप जले नव सुर लय हो। 
            मन में हर्षोल्लास रहे
            जीवन सदा करुणामय हो।

  नव संवत्सर 2071 की हार्दिक शुभकामनायें