रविवार, 8 मार्च 2015

(पु.) भ्रूण हत्या

सुबह-सुबह पत्नी मीना और घर की काम वाली बाई के मध्य तेज बातचीत से नींद खुल गई। न जाने! दोनों के बीच किस विषय पर विमर्श चल रहा था? वैसे, बाई तीन-चार दिनों से काम पर नहीं आ रही थी। शायद, वह न आ पाने का स्पष्टीकरण दे रही थी। “एक तो वा एलगिन खूबइ दूर बरत है। गोडे टूट गये जावे-आवे में। मेट्रो पच्चीस रुपइया लेत एक तरफ के, एक आदमी के।”
थोडा-थोडा माजरा समझ आया कि काम वाली की बहू गर्भवती थी। उसे एल्गिन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। प्रसूति हो चुकी है और सूतक में न आने के कारण वह छुट्टी माँग रही थी। लेकिन आश्चर्य तब हुआ, जब वह बीच-बीच में अपनी बहू को कोस रही थी। “ऐ, बाई-साब! का बतावें। सबरी उम्मीदों पे पानी फिर गओ। ऊपर से चार घरों के काम को हरजा भओ। त्यौहार को टेम हतो। छुट्टी के लाने सबइ बाई-साहिबें नाक-भों सिकोड़त हैं वकीलन बाई ने तो चार दिना के पैसा काट लये। बहुतइ कठोर हें वे!” इसके पहले वह और भला-बुरा कहती, मीना ने उसे टोक दिया कि अभी साहब सो रहे हैं। बाई का स्वर मन्द पड़ गया। मैं फिर सोने की कोशिश करने लगा।
बातचीत लगभग कानाफूसी में बदल गयी थी। तभी ऐसा लगा कि कामवाली रो रही है, मीना उसे समझा रही थी – कामवाली की बुझी-बुझी आवाज ने मुझे बाह्य-बार्तालाप पर कान लगाने के लिए बाध्य कर दिया। बाई कह रही थी—“हमने तो तीसरे महिना डाक्टरी जाँच करवावे को कही हती। पे बहुरानी नहीं मानी, हमइ बात मान लेती तो।” एक झटका सा लगा, मैं बिस्तर से उठ गया, लेकिन मेरी उठने की आहट ने बाई-पुराण पर विराम लगा दिया। मैंने देखा, कि बाई आंगन में बर्तन मांज रही थी; उसका चेहरा तमतमाया हुआ था। बर्तनों की खडबड़ाहट बता रही थी कि बाई के अन्दर एक ज्वालामुखी दबा है, जो कभी भी फट सकता है। रसोईघर के दरवाजे पर बैठी मीना उसे लड़की और लड़के की बराबरी का दर्शन समझा रही थी और साथ-ही पिछले महीने बर्तनवाला पाउडर ज्यादा खर्च हुआ, उसकी कैफियत भी माँग रही थी। गुसलखाने में जाते-जाते मुझे समझ आ चुका था कि बाई की पतोहू ने लड़की जनी है और शायद, वही आदम-समस्या—लड़के की ललक।
नित्य-क्रियाओं से निवृत होकर जब मैं गुसलखाने से बाहर आया,तब तक बाई काम निपटा कर जा चुकी थी। मीना चाय रखे मेरा इंतजार कर रही थी। उसके चेहरे के आते-जाते भाव यह बता रहे थे कि कोई तो बात है, जो उसे खाये जा रही है। अखबार की तहें अभी खुली नहीं थीं; गोया देश-विदेश की कोई घटना उसकी चिंता का कारण हो, वैसे भी मीना को प्रिन्टिंग इंक की गंध अच्छी नहीं लगती। इसलिए वह बासा अखबार ही पड़ती है। बाई की पोती की खबर इतना संवेदनशील मुद्दा नहीं था; क्योंकि वह लड़की और लड़के में बुनियादी अन्तर नहीं मानती, यहाँ तक कि लड़के और बहू में भी नहीं। फिर क्या, बाई से उसे मोहल्ले-पड़ोस की कोई भेद-भरी खबर मिली हो, जिसे सुनाने की उत्सुकता हो।
चाय की प्रथम चुस्की के साथ मैंने उसकी चुप्पी को तोडा और सीधे-सीधे काम वाली बाई के हाल-चाल पूंछ बैठा। बस! फिर क्या था, बदलते ज़माने और उसके दस्तूरों का हवाला देते हुए उसने रहस्योद्घाटन किया। हुआ यूँ, बाई की बहू को जचकी हेतु सरकारी प्रसूतिकागृह में भर्ती कराया गया। वहाँ अच्छी घडी-बेला में एक स्वस्थ बालक का जन्म हुआ। डिलेवरी नार्मल हुई। कोई मूल या दोष भी नहीं। -“बाई के पोता हुआ। पोती नहीं। फिर भी वह इतनी परेशान क्यों थी?” मेरे पूँछे जाने पर मीना ने बताया ladli laxmi–“कामवाली बाई और उसके घरवाले चाहते थे कि उनकी पुत्रवधू लड़की जने। लड़का नहीं। यदि वह लड़की जनती तो अस्पताल का सारा खर्च, दवा-दारू, एम्बुलेंस, गुड़-बिस्वार, ‘लाडली-लक्ष्मी’ योजना के अंतर्गत लड़की का बीमा,हर महीने उसकी देख-रेख के लिये नगद राशि एवम अलग-अलग सुविधाएँ। लड़की की पढाई-लिखाई, उसकी ड्रेस, उसकी खाना-खुराक, उसके लिए साईकिल। ऊपर से हर महीने स्कालरशिप का पैसा अलग से। यदि लड़की हायर शिक्षा लेना चाहे,तो कोचिंग हेतु लोन-सुविधा, जिसके चुकाने के लिए उसकी या उसके घरवालों की कोई जिम्मेदारी नहीं। वयस्क होने पर उसकी शादी, दहेज़ और कन्यादान की कोई चिंता नहीं। यह सभी उसके मामा मुख्य-मंत्री करते हैं। लड़कियों को बराबरी का हक, दर्जा और नौकरी भी। सरकार निकट भविष्य में ऐसे परिवारों को पेंशन देने पर विचार कर रही है, जिनमें सिर्फ लड़कियां हैं। अब चूंकि लड़का हुआ है, इसलिए कोई अतिरिक्त सुविधाएँ नहीं। गरीबी- रेखा का कार्ड लगाकर जो मिल सका, बस! बाकी गांठ से। कामवाली इसलिए रो रही थी। बता रही थी कि उसका लड़का यह खबर सुनकर बिना जच्चा-बच्चा से मिले मद्रास ट्रक लेकर चला गया, आठ दिनों में लौटेगा। आज अस्पताल से बहू की छुट्टी हुई है, और सास काम पर आ गई। भगवान जाने! क्या करती होगी, वह प्रसूता?”
Ladli Laxmi  Yojna Scheme
चित्र: ladlilaxmi.com 
और, मुझे रह-रह कर कामवाली का बुझा स्वर सुनाई दे रहा था—“हमने तो तीसरे महीना डाक्टरी जाँच करवावे को कही हती, पे बहुरानी नई मानी।” काश! बाई की पतोहू गर्भधारण के तीसरे महीने भ्रूण-परीक्षण करवा लेती और जाँच से जब यह पता चलता कि उसकी कोख में एक बालक पल रहा है- तब, तब क्या बाई और उसके परिजन, गर्भपात करवा देते? (पु.) भ्रूण-हत्या का विचार आते ही मैं विचलित हो गया

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